जब हम कोई नई गाड़ी खरीदने जाते हैं,तो हम उसकी कीमत,फीचर्स और माइलेज देखते हैं। लेकिन हम कभी यह नहीं सोचते कि जिस डीलर से हम गाड़ी खरीद रहे हैं,वह खुद किन परेशानियों से जूझ रहा है।आजकल देश भर के हज़ारों ऑटो डीलर एक बहुत बड़ी चिंता में डूबे हुए हैं। उनका हज़ारों करोड़ रुपया सरकार के पास फंसा हुआ है और उन्हें डर है कि कहीं यह पैसा हमेशा के लिए डूब न जाए।क्या है यह पूरा मामला?यह कहानी शुरू होती हैGSTलागू होने से पहले। उस समय जब डीलर कंपनियों से गाड़ियां खरीदते थे,तो उन्हें गाड़ियों पर एक खास किस्म कासेस (Cess)या उपकरचुकाना पड़ता था।जब1जुलाई2017कोGSTलागू हुआ,तो सरकार ने कहा कि डीलरों द्वारा पहले चुकाया गया यह सेस का पैसा उन्हें'इनपुट टैक्स क्रेडिट'के रूप में वापस मिल जाएगा,यानी यह पैसा उनकेGSTभुगतान में एडजस्ट हो जाएगा या उन्हें रिफंड कर दिया जाएगा।समस्या कहाँ आई?सालों बीत गए,लेकिन ज़्यादातर डीलरों को यह पैसा वापस नहीं मिला। यह रकम कोई छोटी-मोटी नहीं,बल्किहज़ारों करोड़ रुपयेमें है। अब डीलरों को यह डर सता रहा है कि अगर यह पैसा जल्द वापस नहीं मिला,तो यह सरकारी नियमों के तहत'लैप्स'हो सकता है,यानी वे इस पर अपना दावा हमेशा के लिए खो देंगे।अब डीलरों ने उठाया बड़ा कदमअपनी मेहनत की कमाई को डूबता देख अब देश भर के ऑटो डीलर एकजुट हो गए हैं। अपनी संस्थाFADA (फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन)के जरिए,वे सरकार से इस मामले में राहत की मांग कर रहे हैं। कई बैठकों के बाद भी जब कोई ठोस समाधान नहीं निकला,तो अब डीलरों ने कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने का मन बना लिया है।यह लड़ाई डीलरों के लिए अपने हक और अपनी पूंजी को बचाने की है,जो बेवजह सरकारी सिस्टम में फंसी हुई है। अब देखना यह है कि क्या उन्हें कोर्ट से राहत मिलती है या नहीं।
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