लखनऊ मेट्रो: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मेट्रो ट्रेन के संचालन में एक बड़ा और आधुनिक बदलाव होने जा रहा है। जब राजधानी के व्यस्त चारबाग इलाके से बसंत कुंज के बीच मेट्रो ट्रेन का संचालन शुरू होगा, तो इसमें ऊपर लटकते हुए बिजली के तारों (ओवरहेड इलेक्ट्रिक वायर) का कोई झंझट ही नहीं रहेगा। जी हाँ, आपने सही सुना! यानी मेट्रो ट्रेन बिना बिजली के तारों के ही पटरियों पर दौड़ेगी। दिल्ली मेट्रो की तर्ज पर अब लखनऊ मेट्रो रेल प्रशासन भी चारबाग से बसंत कुंज तक के नए रूट पर ‘थर्ड रेल सिस्टम’ का इस्तेमाल करने जा रहा है। इस नई तकनीक को अपनाने का एक बड़ा कारण पतंगों के मांझे से होने वाली दिक्कतों से बचना भी है। ओवरहेड इलेक्ट्रिक लाइन की जगह अब थर्ड रेल सिस्टम लगाया जाएगा, जिससे मेट्रो का संचालन और सुगम हो सकेगा।
कैसे होगी स्टील लाइन से बिजली सप्लाई?इस नए रूट पर तीन कोच वाली मेट्रो ट्रेनें चलाई जाएंगी। इन ट्रेनों को बिजली सप्लाई ट्रैक के साथ या बीच में बिछाई गई एक खास स्टील लाइन (कंडक्टर रेल) के ज़रिए की जाएगी। यह तकनीक कोई नई नहीं है; इससे पहले कानपुर और आगरा में मेट्रो का सफल संचालन इसी सिस्टम के ज़रिए किया जा रहा है। वहां की सफलता को देखते हुए ही अब इस तकनीक को लखनऊ में भी लागू किया जा रहा है। उम्मीद है कि इससे मेट्रो के संचालन में किसी भी तरह की बाधा नहीं आएगी और यात्रियों को बेहतर अनुभव मिलेगा।
नए रूट पर क्यों अपनाया जा रहा है थर्ड रेल सिस्टम?आपको बता दें कि लखनऊ मेट्रो के पहले फेज में मुंशीपुलिया से एयरपोर्ट तक चार कोच वाली मेट्रो ट्रेनें चलाई जा रही हैं। इस मौजूदा रूट पर चार अंडरग्राउंड मेट्रो स्टेशन हैं। वहीं, आने वाले ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर (चारबाग से बसंत कुंज) पर 5 अंडरग्राउंड स्टेशन बनाने की योजना है। इसी कारण नए रूट पर तीन कोच वाली मेट्रो ट्रेनें चलाई जाएंगी, जो इस सिस्टम के लिए उपयुक्त हैं।
फिलहाल, मुंशीपुलिया से एयरपोर्ट तक के एलिवेटेड रूट पर ओवरहेड इलेक्ट्रिक लाइन (OHE) का इस्तेमाल होता है। इस OHE लाइन के कारण अक्सर पतंगों के मांझे या धागे फंसने से मेट्रो के संचालन में रुकावट आ जाती है, खासकर पुराने लखनऊ के इलाकों में जहाँ पतंगबाजी काफी होती है। मेट्रो रेल प्रशासन का मुख्य मकसद इसी परेशानी को दूर करना है। पतंगों के मांझे से होने वाली बाधाओं से बचने के लिए ही नए रूट पर बिजली सप्लाई के लिए थर्ड रेल सिस्टम वाला ट्रैक बिछाया जाएगा।
आगरा और कानपुर में पहले ही सफल रहा है यह सिस्टमलखनऊ से पहले, थर्ड रेल सिस्टम का सफल प्रयोग और संचालन आगरा और कानपुर मेट्रो में किया जा चुका है, और यह तकनीक वहां काफी सफल भी रही है। इन दोनों शहरों में मेट्रो ट्रेनें थर्ड रेल सिस्टम से ही चलाई जा रही हैं, और वहां इनका प्रदर्शन अच्छा रहा है। इन्हीं सफलताओं से प्रेरित होकर अब लखनऊ में भी ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर पर इस आधुनिक सिस्टम को लागू करने की तैयारी ज़ोरों पर है।
आखिर यह थर्ड रेल सिस्टम कैसे काम करता है?थर्ड रेल सिस्टम एक ऐसी उन्नत तकनीक है, जो मेट्रो या रैपिड ट्रांजिट ट्रेनों (तेज़ गति वाली शहरी ट्रेनें) को बिजली की सप्लाई करती है। इसमें एक खास प्रकार की स्टील की लाइन बिछाई जाती है, जो या तो पटरियों के साथ-साथ चलती है या फिर दोनों पटरियों के बीच में होती है। इस स्टील लाइन को ‘कंडक्टर रेल’ भी कहा जाता है। ट्रेन के नीचे एक विशेष प्रकार का उपकरण (जिसे ‘कलेक्टर शू’ कहते हैं) लगा होता है, जो इस कंडक्टर रेल से लगातार संपर्क बनाए रखता है और ट्रेन के मोटर्स तक बिजली पहुंचाता है, जिससे ट्रेन चलती है। सबसे अच्छी बात यह है कि ओवरहेड इलेक्ट्रिक वायर की तरह थर्ड रेल सिस्टम में तकनीकी गड़बड़ी या बाहरी चीज़ों (जैसे मांझा) से होने वाली बाधाओं की आशंका बहुत कम होती है, जिससे मेट्रो का संचालन ज़्यादा भरोसेमंद और सुरक्षित हो जाता है।
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