काबुल: भारत सरकार ने एक बड़ा और साहसिक कदम उठाते हुए काबुल में अपने पूर्ण राजनयिक मिशन को फिर से स्थापित किया है। भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी करण यादव को काबुल में भारतीय मिशन का प्रभारी नियुक्त किया है, जो अगस्त 2021 में अफगानिस्तन पर तालिबान के कब्जा करने के बाद नई दिल्ली की औपचारिक वापसी का प्रतीक है। भारत ने इसी महीने तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी के नई दिल्ली दौरे के समय काबुल में पूर्ण राजनयिक मिशन स्थापित करने की घोषणा की थी। इसके पहले भारत का एक तकनीकी मिशन काबुल में तैनात था।
कौन हैं करण यादव?
भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी करण यादव के लिए काबुल में नए नहीं हैं। वे लगभग 18 महीनों से काबुल में तकनीकी मिशन के प्रमुख के रूप में कार्यरत हैं। सीएनएन-न्यूज18 ने एक सूत्र के हवाले से बताया है कि काबुल स्थित भारतीय मिशन में 10-12 कर्मचारी और अधिकारी इस समय तैनात हैं। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ाई जाएगी। दूतावास के अधिकारियों की सुरक्षा के लिए ITBP के लगभग 50-60 जवान तैनात किए जाने की भी योजना है।
चीन और पाकिस्तान की काट
सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि यह कदम काबुल में चीन और पाकिस्तान के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के उद्देश्य से उठाया गया है। दूतावास को फिर से खोलने को अफगानिस्तान के विकास और पुनर्निर्माण प्रयासों में एक स्थिर सहयोगी के रूप में भारत की पारंपरिक भूमिका को फिर हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। तालिबान की वापसी के पहले भारत ने अफगानिस्तान में कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं में निवेश किया था। तालिबान चाहता है कि भारत इन परियोजनाओं को पूरा करे और इसके लिए हर तरह की मदद देने को तैयार है, जिसमें सुरक्षा भी शामिल है।
दूतावास के खुलने से भारत को क्या फायदा?
हालांकि, भारत ने अभी तक अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है, लेकिन पूर्ण राजनयिक मिशन एक व्यवहारि संतुलन स्थापित करता है, जो भारत के हितों और मानवीय परियोजनाओं की रक्षा करते हुए तालिबान सरकार को लेकर वैश्विक साझेदारों के साथ संपर्क में रहेगा। दूतावास के फिर से खुलने से अफगानिस्तान में भारत के निवेश की सीधी निगरानी हो सकेगी। भारत ने यहां 22,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है, जिसमें सलमा बांध, अफगान संसद भवन, स्कूल, अस्पताल के साथ ही रणनीतिक चाबहार व्यापार गलियारा जैसी महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा और विकास परियोजनाएं हैं, जो ईरान के रास्ते भारत को मध्य एशिया को जोड़ता है।
कौन हैं करण यादव?
भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी करण यादव के लिए काबुल में नए नहीं हैं। वे लगभग 18 महीनों से काबुल में तकनीकी मिशन के प्रमुख के रूप में कार्यरत हैं। सीएनएन-न्यूज18 ने एक सूत्र के हवाले से बताया है कि काबुल स्थित भारतीय मिशन में 10-12 कर्मचारी और अधिकारी इस समय तैनात हैं। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ाई जाएगी। दूतावास के अधिकारियों की सुरक्षा के लिए ITBP के लगभग 50-60 जवान तैनात किए जाने की भी योजना है।
चीन और पाकिस्तान की काट
सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि यह कदम काबुल में चीन और पाकिस्तान के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के उद्देश्य से उठाया गया है। दूतावास को फिर से खोलने को अफगानिस्तान के विकास और पुनर्निर्माण प्रयासों में एक स्थिर सहयोगी के रूप में भारत की पारंपरिक भूमिका को फिर हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। तालिबान की वापसी के पहले भारत ने अफगानिस्तान में कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं में निवेश किया था। तालिबान चाहता है कि भारत इन परियोजनाओं को पूरा करे और इसके लिए हर तरह की मदद देने को तैयार है, जिसमें सुरक्षा भी शामिल है।
दूतावास के खुलने से भारत को क्या फायदा?
हालांकि, भारत ने अभी तक अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है, लेकिन पूर्ण राजनयिक मिशन एक व्यवहारि संतुलन स्थापित करता है, जो भारत के हितों और मानवीय परियोजनाओं की रक्षा करते हुए तालिबान सरकार को लेकर वैश्विक साझेदारों के साथ संपर्क में रहेगा। दूतावास के फिर से खुलने से अफगानिस्तान में भारत के निवेश की सीधी निगरानी हो सकेगी। भारत ने यहां 22,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है, जिसमें सलमा बांध, अफगान संसद भवन, स्कूल, अस्पताल के साथ ही रणनीतिक चाबहार व्यापार गलियारा जैसी महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा और विकास परियोजनाएं हैं, जो ईरान के रास्ते भारत को मध्य एशिया को जोड़ता है।
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