पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में चाहे एनडीए हो या फिर महागठबंधन, सभी दल महिला वोटरों पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं। राज्य में महिला मतदाताओं की भूमिका लगातार महत्वपूर्ण होती जा रही है। इसका कारण जानें तो यह पिछले 20 सालों के वोटिंग के रुझानों से साफ हो जाता है। बीजेपी और जेडीयू तो हमेशा से महिला वोट बैंक पर खास ध्यान देती रही है, लेकिन बिहार में इस बार तेजस्वी यादव की पार्टी आरजेडी की भी चुनाव प्रचार की रणनीति महिला वोटरों को ध्यान में रखकर बनाई गई है। नीतीश कुमार सरकार महिलाओं के लिए कई योजनाएं चला रही है और उसने कई योजनाओं की घोषणा भी की है। तेजस्वी यादव भी महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए घोषणाएं कर रहे हैं।
सदी के पहले पांच साल में कम होता था महिला मतदान बिहार में मतदान के पिछले आंकड़ों से पता चलता है यहां महिलाओं का मतदान प्रतिशत पहले कम था, लेकिन बाद में बढ़ता गया है। सन 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में कुल 62.57 प्रतिशत वोट पड़े थे, जिसमें पुरुष वोटरों की तादाद 70.71 प्रतिशत थी, जबकि महिला वोटरों का प्रतिशत 53.28 था। यानी 25 साल पहले पुरुष मतदाताओं की तुलना में महिलाओं का वोट प्रतिशत काफी कम था।
सन 2005 के फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में बिहार में कुल 46.5 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। इसमें पुरुषों का अनुपात 49.95 फीसदी था, जबकि महिला वोटरों की तादाद 42.52 फीसदी थी। यानी साल 2000 की तुलना में वोट देने वाली महिलाओं की संख्या करीब 10 प्रतिशत कम रही थी। बिहार में इसके बाद सन 2005 के अक्टूबर में मध्यावधि चुनाव हुए थे। इसमें कुल 45.85 प्रतिशत वोट पड़े थे। चुनाव में कुल 47.02 पुरुषों ने वोट डाले थे, जबकि महिलाओं का प्रतिशत 44.49 फीसदी था। यही वह चुनाव था जिसमें नीतीश कुमार की सरकार बनी थी।
साल 2010 में महिलाएं निकलीं पुरुषों से आगेबिहार में इसके बाद चुनाव में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने लगी। सन 2010 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने रिकॉर्ड मतदान किया था। इस चुनाव में कुल 52.47 प्रतिशत वोट डाले गए थे, जिसमें महिलाओं का अनुपात 54.49 प्रतिशत था और उन्होंने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया था। पुरुष मतदाताओं का मत प्रतिशत 51.12 फीसदी रहा था।
सन 2015 विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने एक बार फिर पुरुष मतदाताओं को पीछे छोड़ते हुए जमकर मतदान किया था। बिहार के इस चुनाव में कुल 56.66 प्रतिशत वोट पड़े थे। इस चुनाव में 60.48 प्रतिशत महिला वोटरों ने अपने मताधिकार का उपयोग किया था। पुरुषों का मतदान प्रतिशत 53.32 रहा था। इस चुनाव के बाद राज्य में महागठबंधन की सरकार बनी थी।
नीतीश कुमार की वोट बैंक बन गईं महिलाएंसाल 2020 के विधानसभा चुनाव में महिला वोटरों की तादाद में थोड़ी कमी आई, लेकिन वे पुरुषों के मुकाबले फिर भी काफी ज्यादा थीं। इस चुनाव में कुल 56.93 फीसदी वोटिंग हई थी। इसमें कुल 59.69 प्रतिशत महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था, जबकि 54.45 प्रतिशत पुरुष वोट देने के लिए निकले थे। इस चुनाव के बाद एक बार फिर नीतीश कुमार की सरकार बनी थी।
बिहार विधानसभा चुनाव में महिला वोटरों की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए सभी राजनीतिक दल उन्हें अपने पाले में करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। महिला मतदान में बढ़त का रुझान पिछले दो दशकों से लगातार देखा जा रहा है।
आरजेडी ने सबसे अधिक महिला उम्मीदवार उतारीं महिला मतदाता नीतीश कुमार और जेडीयू की मजबूत समर्थक रही हैं। साल 2010 और 2015 के चुनावों के आंकड़ों को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है। यही कारण है कि आरजेडी ने इस बार के चुनाव में कुल 24 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं। इतनी बड़ी संख्या में किसी अन्य दल ने महिलाओं को टिकट नहीं दिए हैं। यह महिला मतदाताओं को आकर्षित करने की उसकी रणनीति का हिस्सा है। तेजस्वी यादव लगातार महिला वोटरों को लुभाने की कोशिश में जुटे हैं और उन्होंने महिलाओं के हित में कई ऐलान भी किए हैं।
सदी के पहले पांच साल में कम होता था महिला मतदान बिहार में मतदान के पिछले आंकड़ों से पता चलता है यहां महिलाओं का मतदान प्रतिशत पहले कम था, लेकिन बाद में बढ़ता गया है। सन 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में कुल 62.57 प्रतिशत वोट पड़े थे, जिसमें पुरुष वोटरों की तादाद 70.71 प्रतिशत थी, जबकि महिला वोटरों का प्रतिशत 53.28 था। यानी 25 साल पहले पुरुष मतदाताओं की तुलना में महिलाओं का वोट प्रतिशत काफी कम था।
सन 2005 के फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में बिहार में कुल 46.5 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। इसमें पुरुषों का अनुपात 49.95 फीसदी था, जबकि महिला वोटरों की तादाद 42.52 फीसदी थी। यानी साल 2000 की तुलना में वोट देने वाली महिलाओं की संख्या करीब 10 प्रतिशत कम रही थी। बिहार में इसके बाद सन 2005 के अक्टूबर में मध्यावधि चुनाव हुए थे। इसमें कुल 45.85 प्रतिशत वोट पड़े थे। चुनाव में कुल 47.02 पुरुषों ने वोट डाले थे, जबकि महिलाओं का प्रतिशत 44.49 फीसदी था। यही वह चुनाव था जिसमें नीतीश कुमार की सरकार बनी थी।
साल 2010 में महिलाएं निकलीं पुरुषों से आगेबिहार में इसके बाद चुनाव में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने लगी। सन 2010 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने रिकॉर्ड मतदान किया था। इस चुनाव में कुल 52.47 प्रतिशत वोट डाले गए थे, जिसमें महिलाओं का अनुपात 54.49 प्रतिशत था और उन्होंने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया था। पुरुष मतदाताओं का मत प्रतिशत 51.12 फीसदी रहा था।
सन 2015 विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने एक बार फिर पुरुष मतदाताओं को पीछे छोड़ते हुए जमकर मतदान किया था। बिहार के इस चुनाव में कुल 56.66 प्रतिशत वोट पड़े थे। इस चुनाव में 60.48 प्रतिशत महिला वोटरों ने अपने मताधिकार का उपयोग किया था। पुरुषों का मतदान प्रतिशत 53.32 रहा था। इस चुनाव के बाद राज्य में महागठबंधन की सरकार बनी थी।
नीतीश कुमार की वोट बैंक बन गईं महिलाएंसाल 2020 के विधानसभा चुनाव में महिला वोटरों की तादाद में थोड़ी कमी आई, लेकिन वे पुरुषों के मुकाबले फिर भी काफी ज्यादा थीं। इस चुनाव में कुल 56.93 फीसदी वोटिंग हई थी। इसमें कुल 59.69 प्रतिशत महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था, जबकि 54.45 प्रतिशत पुरुष वोट देने के लिए निकले थे। इस चुनाव के बाद एक बार फिर नीतीश कुमार की सरकार बनी थी।
बिहार विधानसभा चुनाव में महिला वोटरों की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए सभी राजनीतिक दल उन्हें अपने पाले में करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। महिला मतदान में बढ़त का रुझान पिछले दो दशकों से लगातार देखा जा रहा है।
आरजेडी ने सबसे अधिक महिला उम्मीदवार उतारीं महिला मतदाता नीतीश कुमार और जेडीयू की मजबूत समर्थक रही हैं। साल 2010 और 2015 के चुनावों के आंकड़ों को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है। यही कारण है कि आरजेडी ने इस बार के चुनाव में कुल 24 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं। इतनी बड़ी संख्या में किसी अन्य दल ने महिलाओं को टिकट नहीं दिए हैं। यह महिला मतदाताओं को आकर्षित करने की उसकी रणनीति का हिस्सा है। तेजस्वी यादव लगातार महिला वोटरों को लुभाने की कोशिश में जुटे हैं और उन्होंने महिलाओं के हित में कई ऐलान भी किए हैं।
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