नई दिल्ली: कई लोगों की आंखें सही जगह पर फोकस नहीं कर पातीं, जिससे पास या दूर की चीजें साफ दिखती नहीं है। इसे मेडिकल की भाषा में रिफ्रैक्टिव एरर कहा जाता है। इस एरर को दूर करने के लिए चश्मे की जरूरत होती है। दिल्ली में ऐसे 60 लाख लोगों को चश्मे की जरूरत है। इस एरर का सॉल्यूशन निकालने के लिए शुक्रवार को हुई बैठक में डब्ल्यूएचओ के एक खास टूल के आधार पर इसका आकलन किया गया। इस नतीजे पर पहुंचाया गया कि एक प्लान बनाकर दिल्ली सरकार को सौंपा जाए और सरकार इसे जमीन पर उतार कर लोगों की खराब हो रही आंखों की रोशनी को बचाने के लिए काम कर सके।
6 जिलों के प्रतिनिधि भी हुए शामिलएम्स के कम्युनिटी ऑप्थल्मोलॉजी विभाग के डॉ. प्रवीण वशिष्ठ ने बताया कि शुक्रवार को रिफ्रैक्टिव एरर को लेकर बैठक हुई। बैठक में एम्स की टीम के अलावा, दिल्ली स्टेट प्रोग्राम ऑफिसर, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, डब्ल्यूएचओ के प्रतिनिधियों और दिल्ली के 6 जिलों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। उन्होंने कहा कि रिफ्रैक्टिव एरर के लिए डब्ल्यूएचओ ने एक RESAT यानी टूल बनाया है, जिसका मतलब रिफ्रैक्टिव एरर सेचुरेशनल एनालाइज टूल होता है।
60 लाख लोगों को चश्मे की जरूरतउन्होंने कहा कि हमने बैठक में इस टूल और चुनौतियों के बारे में चर्चा की। खासकर इस एरर का क्या इलाज है, कैसी गाइडलाइंस होनी चाहिए, कितने मैनपावर की जरूरत है, इन्फ्रास्ट्रक्चर कैसी होनी चाहिए, पैसा कहां से आएगा और कितने की जरूरत होगी और सर्विस आदि पर पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि इस टूल के आधार पर आकलन किया गया कि दिल्ली की दो करोड़ की आबादी के आधार पर लगभग 60 लाख लोगों को चश्मे की जरूरत है।
आने वाले समय में दिक्कत बड़ी हो जाएगीडॉक्टर प्रवीण ने कहा कि इस जरूरत को दूर नहीं किया गया तो आने वाले समय में दिक्कत बड़ी हो जाएगी। क्योंकि यह एरर बच्चों और बड़ों दोनों में है। बच्चों की जांच कैसे हो, बुजुर्गों की जांच और इलाज, इन सब पर बात की गई। अब इस टूल के आधार पर एक पूरा प्लान बनाया जाएगा, जिसमें जांच के लिए सेंटर और सेंटर में आंख की जांच करने के लिए ऑप्टोमेट्रिस्ट चाहिए। प्लान बनाकर दिल्ली की मुख्यमंत्री और हेल्थ मिनिस्टर को सौपा जाएगा। उसके बाद सरकार को प्लान को जमीन पर उतारने के लिए पहल करनी होगी।
एक्सपर्ट्स ने की चर्चा
6 जिलों के प्रतिनिधि भी हुए शामिलएम्स के कम्युनिटी ऑप्थल्मोलॉजी विभाग के डॉ. प्रवीण वशिष्ठ ने बताया कि शुक्रवार को रिफ्रैक्टिव एरर को लेकर बैठक हुई। बैठक में एम्स की टीम के अलावा, दिल्ली स्टेट प्रोग्राम ऑफिसर, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, डब्ल्यूएचओ के प्रतिनिधियों और दिल्ली के 6 जिलों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। उन्होंने कहा कि रिफ्रैक्टिव एरर के लिए डब्ल्यूएचओ ने एक RESAT यानी टूल बनाया है, जिसका मतलब रिफ्रैक्टिव एरर सेचुरेशनल एनालाइज टूल होता है।
60 लाख लोगों को चश्मे की जरूरतउन्होंने कहा कि हमने बैठक में इस टूल और चुनौतियों के बारे में चर्चा की। खासकर इस एरर का क्या इलाज है, कैसी गाइडलाइंस होनी चाहिए, कितने मैनपावर की जरूरत है, इन्फ्रास्ट्रक्चर कैसी होनी चाहिए, पैसा कहां से आएगा और कितने की जरूरत होगी और सर्विस आदि पर पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि इस टूल के आधार पर आकलन किया गया कि दिल्ली की दो करोड़ की आबादी के आधार पर लगभग 60 लाख लोगों को चश्मे की जरूरत है।
आने वाले समय में दिक्कत बड़ी हो जाएगीडॉक्टर प्रवीण ने कहा कि इस जरूरत को दूर नहीं किया गया तो आने वाले समय में दिक्कत बड़ी हो जाएगी। क्योंकि यह एरर बच्चों और बड़ों दोनों में है। बच्चों की जांच कैसे हो, बुजुर्गों की जांच और इलाज, इन सब पर बात की गई। अब इस टूल के आधार पर एक पूरा प्लान बनाया जाएगा, जिसमें जांच के लिए सेंटर और सेंटर में आंख की जांच करने के लिए ऑप्टोमेट्रिस्ट चाहिए। प्लान बनाकर दिल्ली की मुख्यमंत्री और हेल्थ मिनिस्टर को सौपा जाएगा। उसके बाद सरकार को प्लान को जमीन पर उतारने के लिए पहल करनी होगी।
एक्सपर्ट्स ने की चर्चा
- WHO के टूल के आधार पर आकलन किया गया।
- आंखों की रिफ्रैक्टिव एरर के मद्देनजर शुक्रवार को हुई बैठक में एक्सपर्ट्स ने की चर्चा।
- प्लान बनाकर दिल्ली की मुख्यमंत्री और हेल्थ मिनिस्टर को सौंपा जाएगा।
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