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'न्याय तक पहुंचने का रास्ता सीधा नहीं, यह लंबा और घुमावदार'; सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने क्यों कही ये बात

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नई दिल्ली: भारत के होने वाले अगले चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, न्याय तक पहुंचने का रास्ता सीधा और छोटा नहीं है। इसके लिए लगातार कोशिश, सहानुभूति और संस्थाओं का साथ बनाए रखना जरूरी है। जस्टिस ने रविवार को कानूनी सहायता वितरण तंत्र को मजबूत बनाने पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन सत्र में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) की नयी पहल कानूनी सहायता रक्षा परामर्श प्रणाली की सराहना की।

जस्टिस सूर्यकांत कहा कि ‘‘न्याय तक पहुंच’’ की धारणा एक अमूर्त आदर्श नहीं है, बल्कि एक अधिकार है, जिसे संस्थागत ताकत, पेशेवर क्षमता और करुणाभाव के जरिये लगातार पोषित किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि कानूनी सेवा प्राधिकरणों ने देश के कोने-कोने तक पहुंचने में सफलता पाई है, लेकिन अब चुनौती इस व्यवस्था को मजबूत और पेशेवर बनाने की है ताकि कानूनी सहायता सार्थक, निरंतर और पर्याप्त रूप से समर्थित हो सके।

न्याय तक पहुंचने का रास्ता सीधा नहीं, लंबा और घुमावदार...
उन्होंने कहा, न्याय तक पहुंचने की यात्रा सीधी राह पर नहीं चलती, यह रास्ता लंबा और घुमावदार है। NALSA का भविष्य केवल अपनी पहुंच बढ़ाने में नहीं, बल्कि अपने प्रभाव को नवाचार, तकनीक और सहानुभूतिपूर्ण जुड़ाव से माध्यम से गहरा करने में है।


उन्होंने कहा कि यह व्यक्तिगत और प्रायः खंडित प्रतिनिधित्व से रक्षा की संरचित और जवाबदेह प्रणाली की ओर बदलाव का प्रतीक है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, 'इस सम्मेलन के दौरान, जो बात सबसे स्पष्ट रूप से उभरकर आई है, वह यह है कि ‘न्याय तक पहुंच’ की धारणा एक अमूर्त आदर्श नहीं है, बल्कि एक ऐसा अधिकार है, जिसे संस्थागत शक्ति, व्यावसायिक क्षमता और सहानुभूतिपूर्ण सहभागिता के जरिये लगातार पोषित किया जाना चाहिए।'

उन्होंने कहा, 'इस सप्ताहांत आयोजित प्रत्येक विचार-विमर्श ने इस बड़े मिशन के एक पहलू को उजागर किया है, तथा साथ मिलकर उन्होंने इस बात की एक आकर्षक तस्वीर पेश की है कि हम कितनी दूर तक आ चुके हैं तथा हमें अभी और कितना आगे जाना है।’’

24 नवंबर को संभालेंगे CJI का पदभार
न्यायमूर्ति सूर्यकांत 24 नवंबर को प्रधान न्यायाधीश पद की शपथ लेंगे। उन्होंने कहा कि कानूनी सहायता के लिए सूचीबद्ध वकील अक्सर कानूनी सहायता पारिस्थितिकी तंत्र में प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता होते हैं और इस सत्र ने याद दिलाया कि न्याय वितरण प्रणाली को मजबूत करने के लिए, न केवल बुनियादी ढांचे और नीति में, बल्कि मानव पूंजी में भी निवेश किया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति ने कहा, ‘‘जब हम नालसा द्वारा एक संस्था के रूप में उसकी स्थापना के बाद के दशकों में अपनाए गए मार्ग को देखते हैं, तो यह स्पष्ट है कि यह एक विचार से एक आंदोलन में परिवर्तित हो गया है - एक वैधानिक निकाय से संवैधानिक सहानुभूति के प्रतीक में परिवर्तित हो गया है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इस संबंध में, मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि नालसा की पहुंच आज देश के सुदूर कोनों तक है, इसकी छाप उन लोगों के जीवन में भी दिखाई देती है, जो अन्यथा अनदेखे और अनसुने रह जाते।’’
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