बिहार में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच प्रशांत किशोर का एक वादा खूब चर्चा बटोर रहा है - शराबबंदी खत्म करना। यह मुद्दा जनता के बीच भी जोर-शोर से उठाया जा रहा है, भले ही नेता इस पर चुप्पी साधे हों। 2016 से लागू शराबबंदी की हकीकत यह है कि यह घर-घर तक पहुंच रही है, जिससे नीति की प्रभावशीलता पर सवाल उठ रहे हैं और सरकार को इस पर पुनर्विचार करने की जरूरत महसूस हो रही है।
बिहार में 2016 से शराबबंदी कानून लागू है। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी यह एक बड़ा मुद्दा था। तब यह माना गया था कि शराबबंदी का फायदा नीतीश कुमार को मिला और खासकर महिलाएं इससे खुश थीं, जिसका असर वोटिंग पर भी दिखा। इस बार भी शराबबंदी चर्चा में है, लेकिन सत्ताधारी NDA नेता खुद इस मुद्दे पर ज्यादा बात करने से बच रहे हैं। वहीं, जनता इस मुद्दे को खुद उठा रही है। चाहे महागठबंधन के समर्थक हों या नीतीश सरकार की वापसी के पक्षधर, शराबबंदी के असर को लेकर उनमें एक जैसी राय है। लोग कहते हैं कि शराबबंदी का क्या असर है? पहले ठेके पर जाकर शराब खरीदनी पड़ती थी, अब तो घर पर ही डिलिवर हो जाती है।
नीति के औचित्य पर ही सवाल
जनता की तरफ से शराबबंदी को लेकर मिल रहे फीडबैक से इस नीति की औचित्य पर सवाल खड़े हो गए हैं। चुनाव के बाद बनने वाली सरकार को यह सोचना होगा कि क्या शराबबंदी की नीति को पूरी तरह खत्म कर दिया जाए या फिर इसे इस तरह से लागू किया जाए कि इसका असली मकसद पूरा हो सके। गया के एक युवा व्यापारी ने बताया कि वह NDA का समर्थक रहा है, लेकिन उसे प्रशांत किशोर की यह बात बहुत पसंद आई कि वह शराबबंदी खत्म करेंगे।
जब उनसे पूछा गया कि शराबबंदी से तो महिलाएं खुश होंगी, तो उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले ही शराब पीने के लिए पड़ोस की एक महिला का पति उसके पांव के बिछुए बेच आया। ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां लोग घर का सामान बेचकर शराब खरीद रहे हैं।
बेचने वालों को नहीं शराब पीने वालों को पकड़ते हैं
इसी तरह की बातें नालंदा से लेकर वैशाली और पटना तक में लोगों ने बताईं। नीतीश कुमार के गांव के पास वाले गांव के सुधीर पासवान ने कहा कि नीतीश से बस एक ही शिकायत है, दारू की। पुलिस वाले बेचने वाले को तो पकड़ते नहीं, पीने वाले को पकड़ लेते हैं और फिर छोड़ने के 3500 रुपये मांगते हैं। इसी तरह राघोपुर में गुलाब राय ने कहा कि मेरा बेटा अब सुई का इस्तेमाल (ड्रग्स) करने लग गया है। पटना में भी कई लोगों ने बताया कि जबसे शराबबंदी हुई है, स्मैक, चरस का इस्तेमाल बढ़ा है।
जमीनी हकीकत से दूर कानून
हाजीपुर में संजय कुमार से शराबबंदी के बारे में पूछने पर उन्होंने हंसते हुए कहा कि बिहार में कोई शराबबंदी नहीं है। पहले जो शराब 200 रुपये में मिलती थी, वह अब 500 रुपये में घर पहुंच रही है। पटना के एक कैफे में दो युवा मिले। उनमें से एक के चाचा BJP से विधायक हैं। उन्होंने कहा कि शराब की होम डिलिवरी हो रही है। सबको पता है कि किसे फोन करना है और क्या कहना है, जिससे शराब सीधे घर पहुंच जाती है।
यह स्थिति दर्शाती है कि शराबबंदी कानून जमीनी हकीकत से कितना दूर है और इसे लागू करने के तरीके पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। जनता की राय साफ है कि या तो इस कानून को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए या फिर इसे खत्म कर दिया जाए, ताकि नशे के बढ़ते कारोबार और उससे जुड़ी समस्याओं पर अंकुश लगाया जा सके।
बिहार में 2016 से शराबबंदी कानून लागू है। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी यह एक बड़ा मुद्दा था। तब यह माना गया था कि शराबबंदी का फायदा नीतीश कुमार को मिला और खासकर महिलाएं इससे खुश थीं, जिसका असर वोटिंग पर भी दिखा। इस बार भी शराबबंदी चर्चा में है, लेकिन सत्ताधारी NDA नेता खुद इस मुद्दे पर ज्यादा बात करने से बच रहे हैं। वहीं, जनता इस मुद्दे को खुद उठा रही है। चाहे महागठबंधन के समर्थक हों या नीतीश सरकार की वापसी के पक्षधर, शराबबंदी के असर को लेकर उनमें एक जैसी राय है। लोग कहते हैं कि शराबबंदी का क्या असर है? पहले ठेके पर जाकर शराब खरीदनी पड़ती थी, अब तो घर पर ही डिलिवर हो जाती है।
नीति के औचित्य पर ही सवाल
जनता की तरफ से शराबबंदी को लेकर मिल रहे फीडबैक से इस नीति की औचित्य पर सवाल खड़े हो गए हैं। चुनाव के बाद बनने वाली सरकार को यह सोचना होगा कि क्या शराबबंदी की नीति को पूरी तरह खत्म कर दिया जाए या फिर इसे इस तरह से लागू किया जाए कि इसका असली मकसद पूरा हो सके। गया के एक युवा व्यापारी ने बताया कि वह NDA का समर्थक रहा है, लेकिन उसे प्रशांत किशोर की यह बात बहुत पसंद आई कि वह शराबबंदी खत्म करेंगे।
जब उनसे पूछा गया कि शराबबंदी से तो महिलाएं खुश होंगी, तो उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले ही शराब पीने के लिए पड़ोस की एक महिला का पति उसके पांव के बिछुए बेच आया। ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां लोग घर का सामान बेचकर शराब खरीद रहे हैं।
बेचने वालों को नहीं शराब पीने वालों को पकड़ते हैं
इसी तरह की बातें नालंदा से लेकर वैशाली और पटना तक में लोगों ने बताईं। नीतीश कुमार के गांव के पास वाले गांव के सुधीर पासवान ने कहा कि नीतीश से बस एक ही शिकायत है, दारू की। पुलिस वाले बेचने वाले को तो पकड़ते नहीं, पीने वाले को पकड़ लेते हैं और फिर छोड़ने के 3500 रुपये मांगते हैं। इसी तरह राघोपुर में गुलाब राय ने कहा कि मेरा बेटा अब सुई का इस्तेमाल (ड्रग्स) करने लग गया है। पटना में भी कई लोगों ने बताया कि जबसे शराबबंदी हुई है, स्मैक, चरस का इस्तेमाल बढ़ा है।
जमीनी हकीकत से दूर कानून
हाजीपुर में संजय कुमार से शराबबंदी के बारे में पूछने पर उन्होंने हंसते हुए कहा कि बिहार में कोई शराबबंदी नहीं है। पहले जो शराब 200 रुपये में मिलती थी, वह अब 500 रुपये में घर पहुंच रही है। पटना के एक कैफे में दो युवा मिले। उनमें से एक के चाचा BJP से विधायक हैं। उन्होंने कहा कि शराब की होम डिलिवरी हो रही है। सबको पता है कि किसे फोन करना है और क्या कहना है, जिससे शराब सीधे घर पहुंच जाती है।
यह स्थिति दर्शाती है कि शराबबंदी कानून जमीनी हकीकत से कितना दूर है और इसे लागू करने के तरीके पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। जनता की राय साफ है कि या तो इस कानून को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए या फिर इसे खत्म कर दिया जाए, ताकि नशे के बढ़ते कारोबार और उससे जुड़ी समस्याओं पर अंकुश लगाया जा सके।
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