मथुरा: प्रेमानंद महाराज के चाहने वाले देश और विदेश से हर रोज उनका दर्शन करने वृंदावन आते रहते हैं। सोशल मीडिया पर भी संत के करोड़ों फॉलोअर्स हैं जो उनके सत्संग के वीडियो देखते और सुनते हैं। इस बीच, प्रेमानंद महाराज का एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें वह श्रद्धालुओं को बता रहे कि कैसे एक आश्रम ने उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इसके बाद वह कहां गए और कैसे जीवन यापन किया, इसका किस्सा भी उन्होंने सुनाया। ज्योति दहिया नामक यूजर ने करीब एक महीने पहले इस वीडियो को अपने यूट्यूब चैनल पर शेयर किया है।
प्रेमानंद महाराज ने कहा- 'मेरी ऐसी स्थिति थी कि चलना मुश्किल था। मुझे आश्रम से निकाल दिया गया। मैं उस आश्रम के महंत के पास गया। मैंने कहा कि महाराज सुना है कि आपने मेरे लिए खबर भेज दी है कि आप निकल जाइए तो अपराध बताइए। कारण बताइए। महंत बोले कि कुछ नहीं। कोई कारण नहीं। बस ऐसे ही। मैंने कहा कि आपको समझ में आना चाहिए कि मैं बीमार शरीर हूं। कम से कम आपके यहां छत के नीचे तो पड़ा हूं। हमारा कोई भरोसा नहीं कि कब शरीर छूट जाए तो कम से कम आप लोगों के बीच में रहने दीजिए।'
'मैं आपका ठेकेदार हूं क्या?'संत ने आगे कहा- 'आश्रम के महंत ने एक शब्द कहा। बोले मैं आपका ठेकेदार हूं क्या? इसके बाद मैंने कुछ नहीं सुना। वहां से पलट गया। मैंने कहा कि ठेकेदार तो हमारे भगवान हैं। उन्होंने कहा कि आश्रम से जाने के लिए 15 दिन का समय देते हैं। मैंने कहा कि मुझे बस 15 मिनट चाहिए। बस आश्रम जाना है और झोला कांधे पर टांगना है।'
'धीरे-धीरे श्रीजी ने ये व्यवस्था कर दी'श्रद्धालुओं को प्रेमानंद महाराज ने बताया- 'अरे हम बचपन से बैरागी हैं। ऐसा नहीं कि माया के आगे घुटने टेक दें। इस प्रपंच में नहीं पड़ना। शेर दिल रहे जिंदगी भर शेर की तरह। बस झोला उठाया और चल दिया। इसके बाद हम राधावल्लभ के पास गए। पूछा कहां रहें क्योंकि वही हैं हमारे मालिक। सत्य मानिए गेट से बाहर भी नहीं निकल पाए थे। एक संत आए। बोले झोला-वोला लेकर कहां घूम रहे हो महाराज। हमने कहा निकाल दिए गए गए तो वे बोले- आओ, बढ़िया व्यवस्था कर दे रहे हैं। धीरे-धीरे श्रीजी ने ये व्यवस्था कर दी।'
प्रेमानंद महाराज ने कहा- 'मेरी ऐसी स्थिति थी कि चलना मुश्किल था। मुझे आश्रम से निकाल दिया गया। मैं उस आश्रम के महंत के पास गया। मैंने कहा कि महाराज सुना है कि आपने मेरे लिए खबर भेज दी है कि आप निकल जाइए तो अपराध बताइए। कारण बताइए। महंत बोले कि कुछ नहीं। कोई कारण नहीं। बस ऐसे ही। मैंने कहा कि आपको समझ में आना चाहिए कि मैं बीमार शरीर हूं। कम से कम आपके यहां छत के नीचे तो पड़ा हूं। हमारा कोई भरोसा नहीं कि कब शरीर छूट जाए तो कम से कम आप लोगों के बीच में रहने दीजिए।'
'मैं आपका ठेकेदार हूं क्या?'संत ने आगे कहा- 'आश्रम के महंत ने एक शब्द कहा। बोले मैं आपका ठेकेदार हूं क्या? इसके बाद मैंने कुछ नहीं सुना। वहां से पलट गया। मैंने कहा कि ठेकेदार तो हमारे भगवान हैं। उन्होंने कहा कि आश्रम से जाने के लिए 15 दिन का समय देते हैं। मैंने कहा कि मुझे बस 15 मिनट चाहिए। बस आश्रम जाना है और झोला कांधे पर टांगना है।'
'धीरे-धीरे श्रीजी ने ये व्यवस्था कर दी'श्रद्धालुओं को प्रेमानंद महाराज ने बताया- 'अरे हम बचपन से बैरागी हैं। ऐसा नहीं कि माया के आगे घुटने टेक दें। इस प्रपंच में नहीं पड़ना। शेर दिल रहे जिंदगी भर शेर की तरह। बस झोला उठाया और चल दिया। इसके बाद हम राधावल्लभ के पास गए। पूछा कहां रहें क्योंकि वही हैं हमारे मालिक। सत्य मानिए गेट से बाहर भी नहीं निकल पाए थे। एक संत आए। बोले झोला-वोला लेकर कहां घूम रहे हो महाराज। हमने कहा निकाल दिए गए गए तो वे बोले- आओ, बढ़िया व्यवस्था कर दे रहे हैं। धीरे-धीरे श्रीजी ने ये व्यवस्था कर दी।'
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