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इंदिरा गांधी का वो दांव... जिससे चित हुए कांग्रेस के दिग्गज, अपनी ही पार्टी के खिलाफ कर दी थी बगावत

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नई दिल्ली: 24 अगस्त 1969... यह वह ऐतिहासिक तारीख है, जब देश के चौथे राष्ट्रपति के रूप में वराहगिरि वेंकट गिरि ने शपथ ली थी। आज भी जब सियासत में बड़ी उथल-पुथल होती है तो वीवी गिरि को जरूर याद किया जाता है, क्योंकि वह राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले देश के एकमात्र ऐसे शख्स हैं, जिन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। समझते हैं वीवी गिरी की जीत की पटकथा में इंदिरा गांधी का क्या रोल था और कहां से इसकी शुरूआत हुई...



देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद कांग्रेस में प्रधानमंत्री पद के कैंडिडेट की खोज की जा रही थी। जिसमें मोरारजी देसाई, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज, नीलम संजीव रेड्डी और इंदिरा गांधी का नाम सुर्खियों में था। कामराज के सपोर्ट से इंदिरा गांधी ने 24 जनवरी 1966 को प्रधानमंत्री का पदभार संभाला। वे भारत की पहली और अब तक की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री थी।



1969 में कांग्रेस में चरम पर थी अंदरूनी कलह

कुछ रिपोर्ट में दावा किया गया कि इंदिरा ने सरकार की कमान तो जरूर संभाल ली थी, लेकिन सत्ता और पार्टी दोनों में इंदिरा को 'गुंगी गुड़िया' के नाम से संबोधित किया गया। हालांकि कुछ ही समय में इंदिरा ने बैंकों के एकीकरण समेत कई बड़े फैसले लिए, जिससे उनके ऊपर से यह टैग हट गया। लेकिन 1969 आते-आते कांग्रेस में अंदरूनी कलह चरम पर थी।



इंदिरा गांधी ने किया था सपोर्ट

इस समय तक कांग्रेस पार्टी दो गुटों में बट चुकी थी, एक गुट पुराने नेताओं का था, जिसमें के कामराज, एस निजलिंगप्पा, नीलम संजीव रेड्डी, मोरारजी देसाई जैसे सिंडीकेट ग्रुप के नेता थे और दूसरी ओर इंदिरा के नेतृत्व में शामिल कई नेता। मतभेदों के कारण इंदिरा गांधी को कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया गया। अब पार्टी दो गुटों में बंट गई। एक कांग्रेस सिंडिकेट, दूसरी इंदिरा की रिक्विजिशनल कांग्रेस।



इसी बीच राष्ट्रपति चुनाव की अधिसूचना जारी हो गई। सिंडिकेट के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी ने नीलम संजीव रेड्डी को उम्मीदवार बनाया, जबकि इंदिरा गांधी ने अपने सांसदों को फ्री हैंड दे दिया। हालांकि अंदर ही अंदर पार्टी के अनुशासन के खिलाफ जाकर वीवी गिरि को जिताने की कोशिशें जारी थी। क्योंकि इंदिरा गांधी अन्य नेताओं को स्पष्ट संदेश देना चाहती थी कि संगठन और सरकार दोनों में उनकी पकड़ बन चुकी है।



निर्दलीय रहते हुए वीवी गिरि ने जीता था चुनाव

जब इस चुनाव की वोटिंग शुरू हुई तो पहले राउंड में किसी भी प्रत्याशी को जीत नहीं मिली लेकिन दूसरे राउंड में वह ऐतिहासिक क्षण आया वीवी गिरि ने निर्दलीय उम्मीदवार रहते हुए यह चुनाव जीत लिया। भारत की सियासत में यह चुनाव आज भी याद किया जाता है।



आयरलैंड से वीवी गिरि ने की थी लॉ की पढ़ाई

बहराल वापस आते हैं वीवी गिरि पर, देश के चौथे राष्ट्रपति ने स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी। उनका जन्म 10 अगस्त 1894 को ओडिशा के बरहामपुर में हुआ था। उन्होंने भारत में प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद आयरलैंड से लॉ और सामाजिक विज्ञान की पढ़ाई की थी। वह राष्ट्रपति बनने से पहले 1967 से 1968 तक उपराष्ट्रपति के पद पर भी रहे।

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