नई दिल्ली: भारत सरकार ने ऑनलाइन यौन शोषण के खिलाफ एक बड़ा कदम उठाया है। अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और पुलिस को शिकायत मिलने के 24 घंटे के अंदर सहमति के बिना साझा की गई अंतरंग तस्वीरें हटानी होंगी। मद्रास हाई कोर्ट ने 22 अक्टूबर को इन स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स (SOPs) को मंजूरी दी है। ये SOPs पहली बार पीड़ितों को यह अधिकार देते हैं कि उन्हें कंटेंट हटाने की प्रक्रिया के बारे में सूचित रखा जाए और अगर कंटेंट दोबारा अपलोड होता है तो उन्हें अलर्ट किया जाए।
साथ ही, जरूरत पड़ने पर कानूनी मदद और मनोवैज्ञानिक परामर्श भी दिया जाएगा। यह कदम हाई कोर्ट के अगस्त के निर्देशों के बाद उठाया गया है, जब कोर्ट ने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से यह स्पष्ट करने को कहा था कि अगर किसी की निजी तस्वीरें ऑनलाइन लीक हो जाती हैं तो पीड़ितों को क्या करना चाहिए।
इन नई गाइडलाइंस के तहत, शिकायत दर्ज कराने के कई रास्ते खोले गए हैं। पीड़ित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के 'Abuse Buttons' का इस्तेमाल कर सकते हैं, या फिर वे प्लेटफॉर्म्स के शिकायत अधिकारियों, राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (NCRP) या सीधे पुलिस से संपर्क कर सकते हैं। अगर पीड़ित किसी भी जवाब से संतुष्ट नहीं हैं, तो वे ऑनलाइन ग्रीवेंस अपीलेट कमेटी (GAC) में अपील कर सकते हैं।
हाई-टेक तकनीक का इस्तेमाल कंटेंट को दोबारा अपलोड होने से रोकने के लिए, इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स (जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स) को 'Crawlers' और 'Hash-Matching' जैसी तकनीकों का इस्तेमाल करना होगा। 'Crawlers' इंटरनेट पर खास तरह की जानकारी ढूंढने वाले सॉफ्टवेयर होते हैं, और 'Hash-Matching' एक ऐसी तकनीक है जो किसी फाइल की पहचान उसके डिजिटल फिंगरप्रिंट से करती है। प्लेटफॉर्म्स को हटाई गई सामग्री के हैश (डिजिटल फिंगरप्रिंट) Meity के Sahyog Portal और गृह मंत्रालय के साइबर अपराध समन्वय केंद्र (Indian Cyber Crime Coordination Centre ) के साथ साझा करने होंगे।
साथ ही, जरूरत पड़ने पर कानूनी मदद और मनोवैज्ञानिक परामर्श भी दिया जाएगा। यह कदम हाई कोर्ट के अगस्त के निर्देशों के बाद उठाया गया है, जब कोर्ट ने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से यह स्पष्ट करने को कहा था कि अगर किसी की निजी तस्वीरें ऑनलाइन लीक हो जाती हैं तो पीड़ितों को क्या करना चाहिए।
इन नई गाइडलाइंस के तहत, शिकायत दर्ज कराने के कई रास्ते खोले गए हैं। पीड़ित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के 'Abuse Buttons' का इस्तेमाल कर सकते हैं, या फिर वे प्लेटफॉर्म्स के शिकायत अधिकारियों, राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (NCRP) या सीधे पुलिस से संपर्क कर सकते हैं। अगर पीड़ित किसी भी जवाब से संतुष्ट नहीं हैं, तो वे ऑनलाइन ग्रीवेंस अपीलेट कमेटी (GAC) में अपील कर सकते हैं।
हाई-टेक तकनीक का इस्तेमाल कंटेंट को दोबारा अपलोड होने से रोकने के लिए, इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स (जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स) को 'Crawlers' और 'Hash-Matching' जैसी तकनीकों का इस्तेमाल करना होगा। 'Crawlers' इंटरनेट पर खास तरह की जानकारी ढूंढने वाले सॉफ्टवेयर होते हैं, और 'Hash-Matching' एक ऐसी तकनीक है जो किसी फाइल की पहचान उसके डिजिटल फिंगरप्रिंट से करती है। प्लेटफॉर्म्स को हटाई गई सामग्री के हैश (डिजिटल फिंगरप्रिंट) Meity के Sahyog Portal और गृह मंत्रालय के साइबर अपराध समन्वय केंद्र (Indian Cyber Crime Coordination Centre ) के साथ साझा करने होंगे।
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