पटनाः पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन की पुण्यतिथि 10 नवम्बर है। मौजूदा बिहार विधानसभा चुनाव में हुई हिंसा के बाद बिहारवासियों को टीएन शेषन की याद आने लगी है। 1995 के विधानसभा चुनाव में हुई हिंसा को काबू में करने के लिए टीएन शेषन ने जो सख्ती की थी वह पूरे देश में चर्चा का विषय बन गयी थी। इस सख्ती को देख कर तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव , शेषन पर आगबबूला हो गये थे। उन्होंने टीएन शेषन के बारे कहा था, ई पागल सांड की तरह कर रहा है, मालूम है कि हम अइसन सांड को रस्सी में बांध कर खटाल में बंद कर देते हैं।
बूथ लूट और चुनावी हिंसा में 14 लोग मारे गये थे
बूथ लूट और हिंसा ने इस चुनाव को भयावह बना दिया था। पहले चरण के मतदान में 14 लोगों के मारे गये थे। जिसमें एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट भी शामिल थे। केन्द्रीय सुरक्षा बलों की 450 कंपनियों की तैनाती के बाद भी ये हिंसा हुई थी। उस समय आरोप लगा कि बिहार सरकार के इशारे पर अफसरों ने इन सुरक्षाबलों की तैनाती संवेदनशील बूथों पर नहीं की थी। गया जिले में एक बूथ लूटने के बाद मतपेटियां मैदान में फेंक दी गयी थीं। बेलागंज में तैनात एक बीएसएफ कमांडर ने टिप्पणी की थी, ये चुनाव तो तमाशा बन कर रह गया है। तब टीएन शेषन ने पंजाब से स्पेशल कमांडो फोर्स को बुलाया और हर संवेदनशील बूथों पर इनकी तैनाती की।
जांच में 12 सीटों पर चुनावी गड़बड़ी सामने आई थी
चुनाव आयोग के कानूनी मामलों के सचिव एसके मेंदीरत्ता ने पहले चरण के चुनाव में भारी गड़बड़ी की शिकायत पर दौरा किया था। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा था जहानाबाद, गया और औरंगाबाद की कम से कम 12 सीटों पर हुए मतदान में भारी गड़बड़ी की गयी है। 11 मार्च 1995 को हुए पहले चरण के मतदान में हुई धांधली को देखते हुए यह सुनिश्चित करना जरूरी था कि अब आगे ऐसी गड़बड़ी न हो। नये सिरे से सुरक्षा प्रबंध करने के लिए समय चाहिए था। इसलिए चुनाव की अगली तारीख स्थगित कर दी गयी।
निष्पक्ष मतदान के लिए 4 बार स्थगित हुआ चुनाव
निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान के लिए टीएन शेषन ने कुल चार बार चुनाव की तारीखें स्थगित कीं। 1995 का विधानसभा चुनाव, बिहार का सबसे का सबसे लंबा चुनाव था। चुनाव की घोषणा 8 दिसम्बर 1994 को हुई थी और अंतिम चरण का चुनाव 28 मार्च को हुआ था। चुनाव के दौरान 23 फरवरी 1995 को टीएन शेषन ने केन्द्र सरकार को एक गोपनीय रिपोर्ट भेजी थी। इसमें कहा गया था, 8719 लोगों को चुनावी अपराधों में शामिल बताया गया था। इन पर 950 आपराधिक मामले दर्ज किये गये थे। लेकिन राज्य सरकार ने एक पर भी कार्रवाई नहीं की। चुनाव आयोग ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह हर दिन शाम 8 बजे कानून व्यवस्था की रिपोर्ट निर्धारित प्रपत्र में भेजे, लेकिन ये रिपोर्ट हर बार गलत और अपूर्ण रही।
साहसी टीएन शेषन धमकियों से डरे नहीं
टीएन शेष ने पूरे देश को पहली बार बताया कि चुनाव आयोग को कितनी शक्तियां प्राप्त हैं और वह कितनी शक्तिशाली संस्था है। शेषन को रोकने के लिए धमकी दी जाने लगी। लेकिन वे किसी डरे नहीं। वे स्वभाव से साहसी थे। खुद पर हद से अधिक भरोसा था। वे 1954 के UPSC टॉपर थे। इंटर के बाद इंजीनियरिंग में दाखिला मिल गया था। लेकिन कुछ बड़ा करने के लिए इंजीनियरिंग में दाखिला नहीं लिया। फिजिक्स ऑनर्स के साथ ग्रेजुएशन किया। फिर सिविल सर्विसेज परीक्षा में सर्वोच्च स्थान हासिल किया। जो ठान लिया वो कर के रहते थे शेषन। उन्होंने कहा था, बिहार चुनाव मेरे जीवन की सबसे कठिन परीक्षा है।
वीपी सिंह का बयान टर्निंग प्वाइंट
बिहार विधानसभा चुनाव जब तीसरी बार स्थगित हुआ तो वीपी सिंह भी पटना आये थे। वे बेहद बीमार थे। कहा जाता है कि लालू यादव ने अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए वीपी सिंह को बिहार बुलाया था। पटना पहुंचने के बाद वीपी सिंह ने कहा था, बिहार में मंडल को कमजोर करने और पुरानी शोषक व्यवस्था को वापस लाने की कोशिशें हो रही है। लालू यादव ने आरोप लगाया कि शेषन केंद्र की कांग्रेस सरकार के इशारे पर यह सब कर रहे हैं। लालू यादव की पार्टी (जनता दल) चुनाव स्थगन के फैसले कि खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गयी। लेकिन कोर्ट ने इस याचिका का खारिज कर दिया। कोर्ट ने टिप्पणी की, राज्य की स्थिति असाधारण थी। यानी कोर्ट ने भी चुनाव स्थगन को गलत नहीं माना।
शेषन की सख्ती को मंडल के खिलाफ साजिश बता कर बदला माहौल
वीपी सिंह के बयान के बाद लालू यादव ने इस चुनाव को मंडल की प्रतिष्ठा से जोड़ दिया। लालू यादव ने प्रचारित करना शुरू कर दिया कि चुनाव आयोग गरीबों के अधिकार को छीनने के लिए साजिश कर रहा है। उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी। पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे। आरोप लगने लगा कि टीएन शेषन बिहार में गरीबों की सरकार (लालू यादव) को हटाने के लिए कांग्रेस के साथ मिल गये हैं। इस नैरेटिव ने इस चुनाव का रंग-रूप ही बदल दिया। बूथ लूट और हिंसा के कारण जो सरकार कानून के कठघरे में खड़ा थी वह अचानक सहानुभूति का पात्र बन गयी। पिछड़े वर्ग के लोग पूरी ताकत के साथ लालू यादव के पक्ष में खड़ा हो गये। कानून-व्यवस्था से अधिक उनके लिए लालू यादव की प्रतिष्ठा जरूरी हो गयी। इसका नतीजा ये हुआ कि तमाम विवादों के बाद भी लालू यादव पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटे।
बूथ लूट और चुनावी हिंसा में 14 लोग मारे गये थे
बूथ लूट और हिंसा ने इस चुनाव को भयावह बना दिया था। पहले चरण के मतदान में 14 लोगों के मारे गये थे। जिसमें एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट भी शामिल थे। केन्द्रीय सुरक्षा बलों की 450 कंपनियों की तैनाती के बाद भी ये हिंसा हुई थी। उस समय आरोप लगा कि बिहार सरकार के इशारे पर अफसरों ने इन सुरक्षाबलों की तैनाती संवेदनशील बूथों पर नहीं की थी। गया जिले में एक बूथ लूटने के बाद मतपेटियां मैदान में फेंक दी गयी थीं। बेलागंज में तैनात एक बीएसएफ कमांडर ने टिप्पणी की थी, ये चुनाव तो तमाशा बन कर रह गया है। तब टीएन शेषन ने पंजाब से स्पेशल कमांडो फोर्स को बुलाया और हर संवेदनशील बूथों पर इनकी तैनाती की।
जांच में 12 सीटों पर चुनावी गड़बड़ी सामने आई थी
चुनाव आयोग के कानूनी मामलों के सचिव एसके मेंदीरत्ता ने पहले चरण के चुनाव में भारी गड़बड़ी की शिकायत पर दौरा किया था। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा था जहानाबाद, गया और औरंगाबाद की कम से कम 12 सीटों पर हुए मतदान में भारी गड़बड़ी की गयी है। 11 मार्च 1995 को हुए पहले चरण के मतदान में हुई धांधली को देखते हुए यह सुनिश्चित करना जरूरी था कि अब आगे ऐसी गड़बड़ी न हो। नये सिरे से सुरक्षा प्रबंध करने के लिए समय चाहिए था। इसलिए चुनाव की अगली तारीख स्थगित कर दी गयी।
निष्पक्ष मतदान के लिए 4 बार स्थगित हुआ चुनाव
निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान के लिए टीएन शेषन ने कुल चार बार चुनाव की तारीखें स्थगित कीं। 1995 का विधानसभा चुनाव, बिहार का सबसे का सबसे लंबा चुनाव था। चुनाव की घोषणा 8 दिसम्बर 1994 को हुई थी और अंतिम चरण का चुनाव 28 मार्च को हुआ था। चुनाव के दौरान 23 फरवरी 1995 को टीएन शेषन ने केन्द्र सरकार को एक गोपनीय रिपोर्ट भेजी थी। इसमें कहा गया था, 8719 लोगों को चुनावी अपराधों में शामिल बताया गया था। इन पर 950 आपराधिक मामले दर्ज किये गये थे। लेकिन राज्य सरकार ने एक पर भी कार्रवाई नहीं की। चुनाव आयोग ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह हर दिन शाम 8 बजे कानून व्यवस्था की रिपोर्ट निर्धारित प्रपत्र में भेजे, लेकिन ये रिपोर्ट हर बार गलत और अपूर्ण रही।
साहसी टीएन शेषन धमकियों से डरे नहीं
टीएन शेष ने पूरे देश को पहली बार बताया कि चुनाव आयोग को कितनी शक्तियां प्राप्त हैं और वह कितनी शक्तिशाली संस्था है। शेषन को रोकने के लिए धमकी दी जाने लगी। लेकिन वे किसी डरे नहीं। वे स्वभाव से साहसी थे। खुद पर हद से अधिक भरोसा था। वे 1954 के UPSC टॉपर थे। इंटर के बाद इंजीनियरिंग में दाखिला मिल गया था। लेकिन कुछ बड़ा करने के लिए इंजीनियरिंग में दाखिला नहीं लिया। फिजिक्स ऑनर्स के साथ ग्रेजुएशन किया। फिर सिविल सर्विसेज परीक्षा में सर्वोच्च स्थान हासिल किया। जो ठान लिया वो कर के रहते थे शेषन। उन्होंने कहा था, बिहार चुनाव मेरे जीवन की सबसे कठिन परीक्षा है।
वीपी सिंह का बयान टर्निंग प्वाइंट
बिहार विधानसभा चुनाव जब तीसरी बार स्थगित हुआ तो वीपी सिंह भी पटना आये थे। वे बेहद बीमार थे। कहा जाता है कि लालू यादव ने अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए वीपी सिंह को बिहार बुलाया था। पटना पहुंचने के बाद वीपी सिंह ने कहा था, बिहार में मंडल को कमजोर करने और पुरानी शोषक व्यवस्था को वापस लाने की कोशिशें हो रही है। लालू यादव ने आरोप लगाया कि शेषन केंद्र की कांग्रेस सरकार के इशारे पर यह सब कर रहे हैं। लालू यादव की पार्टी (जनता दल) चुनाव स्थगन के फैसले कि खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गयी। लेकिन कोर्ट ने इस याचिका का खारिज कर दिया। कोर्ट ने टिप्पणी की, राज्य की स्थिति असाधारण थी। यानी कोर्ट ने भी चुनाव स्थगन को गलत नहीं माना।
शेषन की सख्ती को मंडल के खिलाफ साजिश बता कर बदला माहौल
वीपी सिंह के बयान के बाद लालू यादव ने इस चुनाव को मंडल की प्रतिष्ठा से जोड़ दिया। लालू यादव ने प्रचारित करना शुरू कर दिया कि चुनाव आयोग गरीबों के अधिकार को छीनने के लिए साजिश कर रहा है। उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी। पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे। आरोप लगने लगा कि टीएन शेषन बिहार में गरीबों की सरकार (लालू यादव) को हटाने के लिए कांग्रेस के साथ मिल गये हैं। इस नैरेटिव ने इस चुनाव का रंग-रूप ही बदल दिया। बूथ लूट और हिंसा के कारण जो सरकार कानून के कठघरे में खड़ा थी वह अचानक सहानुभूति का पात्र बन गयी। पिछड़े वर्ग के लोग पूरी ताकत के साथ लालू यादव के पक्ष में खड़ा हो गये। कानून-व्यवस्था से अधिक उनके लिए लालू यादव की प्रतिष्ठा जरूरी हो गयी। इसका नतीजा ये हुआ कि तमाम विवादों के बाद भी लालू यादव पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटे।
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