पटनाः मोकामा विधानसभा की धरती पर यादव नेता दुलारचंद यादव की हत्या की आंच की धमका एनडीए के लिए कही अभिशाप न बन जाए। हालिया स्थिति का आकलन यह इशारा कर रहा है कि मुंगेर, नवादा, नालंदा और पटना जिले के कई विधानसभा के जातीय समीकरण प्रभावित होते दिखने लगे हैं। मोकामा विधानसभा की धरती से शुरू हुई धानुक और यादव की गोलबंदी ने एक नया राजनीतिक समीकरण का सूत्रपात कर दिया है।
अब इस नए समीकरण की जद में एनडीए के कई विधानसभा की जीत मुश्किल राह पर चल पड़ी है। चलिए जानते हैं मोकामा की धरती से उठे नए जाति गठजोड़ किस-किस विधानसभा को प्रभावित करते दिख रही है। यह दीगर कि एनडीए के रणनीतिकारों ने रातों रात दुलारचंद यादव की हत्या के आरोपी अनंत सिंह को रातोंरात गिरफ्तार कर जेल भेजने का काम कर एक हद तक डैमेज कंट्रोल करने का काम किया है। बहरहाल, इस घटना के प्रभाव की जद में आती विधानसभा सीटें।
बैकवर्ड फॉरवर्ड की गोलबंदी और मोकामा
मोकामा विधानसभा का सियासी सुर बदल गया है। जनसुराज के उम्मीदवार पीयूष और यादव नेता दुलारचंद ने मिल कर जिस नए जातीय गठबंधन का सुर अलापना शुरू किया था, उसका बहुत जोर नहीं चल पा रहा था। मोकामा के यादवों की प्राथमिकता तेजस्वी यादव को सीएम बनते देखना था। लेकिन इस हत्या ने यहां के समीकरण को ही बदल दिया। धीरे धीरे गोलबंदी का आधार बैकवर्ड और फॉरवर्ड की दिशा में बढ़ता चला गया। मगर साथ साथ यह द्वंद भी है कि यह बैकवर्ड की गोलबंदी राजद के उम्मीदवार सूरजभान की तरफ जाएगा या फिर जनसुराज के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी की तरफ।
दूसरी तरफ दुलारचंद यादव की हत्या के बात अनंत सिंह को जातिसूचक गाली देने से मोकामा विधानसभा में सवर्ण की गोलबंदी मजबूत हुई है। साथ इसके एनडीए के साथी दल के वोट यानी मोकामा में पासवान के वोटर सवर्ण के साथ जा जुड़े है। सवर्ण की गोलबंदी के कुर्मी वोटर भी उस हद तक नाराज नहीं हैं जितना धानुक जाति के लोग।
किधर जा रहा है मोकामा का चुनाव?
मोकामा विधानसभा का चुनाव अब नए राजनीतिक समीकरण की भेंट चढ़ गया है। यादव वोट यदि जनसुराज के साथ जुड़ता है तो राजद के उम्मीदवार सूरजभान सिंह का आधार कमजोर होगा। इधर सवर्णों की गोलबंदी का अधिकांश हिस्सा जदयू के अनंत सिंह के खाते में जाता है तो जदयू और लोजपा का आधार वोटर कुर्मी और पासवान मिलकर मजबूती से चुनावी संघर्ष को अंजाम तक ले जाते हैं। अगर सवर्ण खास कर भूमिहार मत सूरज भान सिंह और अनंत सिंह के बीच बंट जाता है तो धानुक यादव गठजोड़ यानी जनसुराज भी टक्कर देने की स्थिति में आ जाएगा। वहीं यादवों ने तेजस्वी यादव को सीएम बनाने के मद्देनजर राजद उम्मीदवार सूरजभान सिंह को वोट करती है तो मुकाबला अनंत सिंह और सूरजभान सिंह के बीच होगा।
बाढ़ विधानसभा में धानुक-यादव का गठजोड़
मोकामा से उठे धानुक-यादव के गठजोड़ का सबसे ज्यादा प्रभाव बाढ़ विधानसभा पर पड़ा है। इसकी वजह यह है कि मोकामा टाल और बाढ़ टाल का नेचर एक सा है। भाजपा बाढ़ विधानसभा की सीट को टेकन फॉर ग्रांटेड मान चुकी थी। लेकिन इस बदलते जातीय समीकरण में अब थोड़ी मुश्किल में पड़ गई है। बाढ़ विधानसभा को ले कर भाजपा ने सीटिंग विधायक ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू का टिकट काट कर ख्यात प्राप्त डॉ. सियाराम सिंह उम्मीदवार बनाया है। बाढ़ विधानसभा में कुल वोटरों की संख्या 2.90 लाख है। राजपूत की जनसंख्या लगभग 90 हजार के पास है। उधर यादव और धानुक जाति के वोट बैंक को जोड़ दे यह तकरीबन 50 से 55 हजार के आसपास है। ये वे वोट हैं जिनकी पोलिंग प्रतिशत सवर्णों के मुताबिक काफी कम है। ऐसे में बीजेपी के उम्मीदवार डॉक सियाराम सिंह की जंग राजद के उम्मीदवार लल्लू मुखिया से आसान नहीं रह गई है।
मुंगेर जिला के लखीसराय और सूर्यगढ़ा
लखीसराय विधानसभा के प्रमुख उम्मीदवार दोनों ही सवर्ण जाति के हैं। बीजेपी ने अपने उप मुख्यमंत्री विजय सिन्हा को चुनावी जंग में उतारा है। वही महागठबंधन ने कांग्रेस के उम्मीदवार अमरेश अनीश को चुनावी जंग में उतारा है। गत विधानसभा की जंग में बीजेपी उम्मीदवार ने कांग्रेस उम्मीदवार ने अमरेश अनीश को 10 हजार से हराया था। इस बार मोकामा से चली धानुक और यादव की लहर बीजेपी उम्मीदवार विजय सिन्हा को कही ज्यादा परेशान बढ़ा न दे।
सूर्यगढ़ा विधानसभा की जंग त्रिकोणात्मक मोड पर
सूर्यगढ़ा विधानसभा की जंग त्रिकोणात्मक मोड पर जा पहुंचा है। यहां जदयू के रामानंद मंडल,राजद के प्रेम सागर और निर्दलीय रवि शंकर उर्फ अशोक कुमार सिंह के बीच है। यहां भी धानुक और यादव का गठजोड़ राजद के प्रेम सागर के रथ पर सवार हो जायेगा तो जीत के सिनेरियो से जदयू गायब हो सकता है। ऐसे में निर्दलीय उम्मीदवार अशोक कुमार सिंह और प्रेम सागर आमने हो गए तो जेडीयू की बाजी हाथ से छूट जायेगी।
आंशिक प्रभाव वाले क्षेत्र
इस हत्याकांड का प्रभाव समग्रता से देखे तो नवादा जिला, नालंदा जिला और पटना जिला के अंतर्गत आने वाले कई विधानसभा प्रभावित होंगे। इनमें बरबीघा, शेखपुरा, हिलसा और वारिसलीगंज विधानसभा शामिल है। यह दीगर के सरकार के सहारे डैमेज कंट्रोल का खेल एनडीए की तरफ से खेला जा रहा है। सूत्रों की मानें तो धानुक जाति से आने वाले एनडीए के दूत इस समीकरण को ध्वस्त करने निकल चुके हैं।
अब इस नए समीकरण की जद में एनडीए के कई विधानसभा की जीत मुश्किल राह पर चल पड़ी है। चलिए जानते हैं मोकामा की धरती से उठे नए जाति गठजोड़ किस-किस विधानसभा को प्रभावित करते दिख रही है। यह दीगर कि एनडीए के रणनीतिकारों ने रातों रात दुलारचंद यादव की हत्या के आरोपी अनंत सिंह को रातोंरात गिरफ्तार कर जेल भेजने का काम कर एक हद तक डैमेज कंट्रोल करने का काम किया है। बहरहाल, इस घटना के प्रभाव की जद में आती विधानसभा सीटें।
बैकवर्ड फॉरवर्ड की गोलबंदी और मोकामा
मोकामा विधानसभा का सियासी सुर बदल गया है। जनसुराज के उम्मीदवार पीयूष और यादव नेता दुलारचंद ने मिल कर जिस नए जातीय गठबंधन का सुर अलापना शुरू किया था, उसका बहुत जोर नहीं चल पा रहा था। मोकामा के यादवों की प्राथमिकता तेजस्वी यादव को सीएम बनते देखना था। लेकिन इस हत्या ने यहां के समीकरण को ही बदल दिया। धीरे धीरे गोलबंदी का आधार बैकवर्ड और फॉरवर्ड की दिशा में बढ़ता चला गया। मगर साथ साथ यह द्वंद भी है कि यह बैकवर्ड की गोलबंदी राजद के उम्मीदवार सूरजभान की तरफ जाएगा या फिर जनसुराज के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी की तरफ।
दूसरी तरफ दुलारचंद यादव की हत्या के बात अनंत सिंह को जातिसूचक गाली देने से मोकामा विधानसभा में सवर्ण की गोलबंदी मजबूत हुई है। साथ इसके एनडीए के साथी दल के वोट यानी मोकामा में पासवान के वोटर सवर्ण के साथ जा जुड़े है। सवर्ण की गोलबंदी के कुर्मी वोटर भी उस हद तक नाराज नहीं हैं जितना धानुक जाति के लोग।
किधर जा रहा है मोकामा का चुनाव?
मोकामा विधानसभा का चुनाव अब नए राजनीतिक समीकरण की भेंट चढ़ गया है। यादव वोट यदि जनसुराज के साथ जुड़ता है तो राजद के उम्मीदवार सूरजभान सिंह का आधार कमजोर होगा। इधर सवर्णों की गोलबंदी का अधिकांश हिस्सा जदयू के अनंत सिंह के खाते में जाता है तो जदयू और लोजपा का आधार वोटर कुर्मी और पासवान मिलकर मजबूती से चुनावी संघर्ष को अंजाम तक ले जाते हैं। अगर सवर्ण खास कर भूमिहार मत सूरज भान सिंह और अनंत सिंह के बीच बंट जाता है तो धानुक यादव गठजोड़ यानी जनसुराज भी टक्कर देने की स्थिति में आ जाएगा। वहीं यादवों ने तेजस्वी यादव को सीएम बनाने के मद्देनजर राजद उम्मीदवार सूरजभान सिंह को वोट करती है तो मुकाबला अनंत सिंह और सूरजभान सिंह के बीच होगा।
बाढ़ विधानसभा में धानुक-यादव का गठजोड़
मोकामा से उठे धानुक-यादव के गठजोड़ का सबसे ज्यादा प्रभाव बाढ़ विधानसभा पर पड़ा है। इसकी वजह यह है कि मोकामा टाल और बाढ़ टाल का नेचर एक सा है। भाजपा बाढ़ विधानसभा की सीट को टेकन फॉर ग्रांटेड मान चुकी थी। लेकिन इस बदलते जातीय समीकरण में अब थोड़ी मुश्किल में पड़ गई है। बाढ़ विधानसभा को ले कर भाजपा ने सीटिंग विधायक ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू का टिकट काट कर ख्यात प्राप्त डॉ. सियाराम सिंह उम्मीदवार बनाया है। बाढ़ विधानसभा में कुल वोटरों की संख्या 2.90 लाख है। राजपूत की जनसंख्या लगभग 90 हजार के पास है। उधर यादव और धानुक जाति के वोट बैंक को जोड़ दे यह तकरीबन 50 से 55 हजार के आसपास है। ये वे वोट हैं जिनकी पोलिंग प्रतिशत सवर्णों के मुताबिक काफी कम है। ऐसे में बीजेपी के उम्मीदवार डॉक सियाराम सिंह की जंग राजद के उम्मीदवार लल्लू मुखिया से आसान नहीं रह गई है।
मुंगेर जिला के लखीसराय और सूर्यगढ़ा
लखीसराय विधानसभा के प्रमुख उम्मीदवार दोनों ही सवर्ण जाति के हैं। बीजेपी ने अपने उप मुख्यमंत्री विजय सिन्हा को चुनावी जंग में उतारा है। वही महागठबंधन ने कांग्रेस के उम्मीदवार अमरेश अनीश को चुनावी जंग में उतारा है। गत विधानसभा की जंग में बीजेपी उम्मीदवार ने कांग्रेस उम्मीदवार ने अमरेश अनीश को 10 हजार से हराया था। इस बार मोकामा से चली धानुक और यादव की लहर बीजेपी उम्मीदवार विजय सिन्हा को कही ज्यादा परेशान बढ़ा न दे।
सूर्यगढ़ा विधानसभा की जंग त्रिकोणात्मक मोड पर
सूर्यगढ़ा विधानसभा की जंग त्रिकोणात्मक मोड पर जा पहुंचा है। यहां जदयू के रामानंद मंडल,राजद के प्रेम सागर और निर्दलीय रवि शंकर उर्फ अशोक कुमार सिंह के बीच है। यहां भी धानुक और यादव का गठजोड़ राजद के प्रेम सागर के रथ पर सवार हो जायेगा तो जीत के सिनेरियो से जदयू गायब हो सकता है। ऐसे में निर्दलीय उम्मीदवार अशोक कुमार सिंह और प्रेम सागर आमने हो गए तो जेडीयू की बाजी हाथ से छूट जायेगी।
आंशिक प्रभाव वाले क्षेत्र
इस हत्याकांड का प्रभाव समग्रता से देखे तो नवादा जिला, नालंदा जिला और पटना जिला के अंतर्गत आने वाले कई विधानसभा प्रभावित होंगे। इनमें बरबीघा, शेखपुरा, हिलसा और वारिसलीगंज विधानसभा शामिल है। यह दीगर के सरकार के सहारे डैमेज कंट्रोल का खेल एनडीए की तरफ से खेला जा रहा है। सूत्रों की मानें तो धानुक जाति से आने वाले एनडीए के दूत इस समीकरण को ध्वस्त करने निकल चुके हैं।
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अनंत सिंह की गिरफ़्तारी और दुलारचंद यादव की हत्या के बाद मोकामा में क्या बदलता दिख रहा है?- ग्राउंड रिपोर्ट




