नई दिल्ली: आज भी जब देश की राजनीति में सादगी, सच्चाई, ईमानदारी, विनम्रता और राष्ट्र के सच्चे सपूत के तौर पर समर्पण की सच्ची भावना की बात होती है, तो मात्र एक ही नाम जुबान पर आता है, वह हैं देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री। भारतीय राजनीति के वे एक ऐसे व्यक्तित्व हैं, जो विवादों से परे हैं। शास्त्री जी के विचारों के कायल उनके राजनीतिक विचारधारा के विरोधी भी रहे हैं। गुरुवार यानी 2 अक्टूबर, 2025 को उनकी 121वीं जयंती है। महात्मा गांधी के जन्म के 35 साल बाद 2 अक्टूबर,1904 को वाराणसी के पास मुगलसराय में जन्मे शास्त्री जी की जयंती देश उसी दिन मनाता है, जिस दिन गांधी जयंती होती है।
राजनीति में अलग ही शख्सियत थे शास्त्री जी
जबतक लोकतंत्र है, छोटी कद-काठी, सौम्य व्यक्तित्व लेकिन, फौलादी इरादों वाले लाल बहादुर शास्त्री दुनिया भर के राजनीति के विद्यार्थियों के लिए अनमोल केस स्टडी रहेंगे। विश्व भर की राजनीति आज जिस तरह से नीचता के सारे मानक तोड़ती जा रही है, उसमें शास्त्री जैसे नायक की महान स्मृतियां भविष्य के लिए चट्टानी उम्मीदें जगा देती हैं। प्रधानमंत्री के तौर पर अपने बहुत ही कम समय के कार्यकाल में भी उन्होंने भारत पर जो अमिट छाप छोड़ी, वह एक कीर्ति के तौर पर स्थापित है। वैसे तो शास्त्री जी के बारे लोग बहुत कुछ जानते हैं, लेकिन हम यहां ऐसे 10 रोचक तथ्य बता रहे हैं, जिनके बारे में शायद कम लोगों को पता है।
1. श्रीवास्तव परिवार में जन्म लेने की वजह से उनका नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव पड़ा। लेकिन, वे देश की जातिवादी व्यवस्था को पसंद नहीं करते थे। वे लोकसेवक मंडल के आजीवन सदस्य भी थे, जो पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए काम करता रहा। जब 1925 में वाराणसी स्थित काशी विद्या पीठ ने उन्हें स्नातक की डिग्री के तौर पर 'शास्त्री' की उपाधि दी तो उन्होंने नाम में श्रीवास्तव की जगह शास्त्री कर लिया।
2. एक भयंकर रेल हादसे की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए शास्त्री जी के रेल मंत्री पद से इस्तीफा देने की बात तो ज्यादातर लोगों को पता है। लेकिन, यह शास्त्री जी ही थे, जिन्होंने गृहमंत्री बनने पर भ्रष्टाचार से निपटने के लिए पहली बार समिति भी गठित की थी।
3. एक बार शास्त्री जी को पता चला कि उनके बेटे को नौकरी में समय से पहले प्रमोशन मिल गया है। उन्होंने तत्काल आदेश जारी कर अपने बेटे का प्रमोशन रुकवा दिया।
4. लाल बहादुर शास्त्री बहुत ही सामान्य परिवार से थे। सिर पर कपड़ा और पोथी लेकर गंगा पार कर पढ़ाई के लिए जाने के उनके किस्से भी बहुतों को पता है, लेकिन वे ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी पहली और इकलौती कार (फिएट) खरीदी। उनके पास पैसे नहीं थे, तो उन्होंने इसके लिए 5,000 रुपये लोन लिया। जब उनकी रूस के ताशकंद में संदिग्ध मौत हुई, तबतक इसका लोन नहीं चुका था और संपत्ति के नाम पर भी वे परिवार के लिए यही छोड़कर गए थे। फिर उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने अपनी पेंशन से कर्ज चुकता किया।
5. प्रधानमंत्री रहते शास्त्री जी को एक बार पता चला की उनकी सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल किसी काम के लिए बच्चों ने कर लिया है। यह उनके लिए बहुत ही बड़ी बात थी। सोचने लगे कि सरकार ने गाड़ी तो उन्हें सरकारी काम के लिए दी है, फिर परिवार के सदस्य का इस्तेमाल करना तो बहुत ही गलत है। बच्चे तो बच्चे थे, क्या किया जा सकता था। आखिर तब उनके मन को शांति मिली, जब सरकारी दर पर गाड़ी का पूरा किराया उन्होंने सरकारी खजाने में जमा करवा दिया।
6. जब शास्त्री जी उत्तर प्रदेश में पुलिस और यातायात नियंत्रण मंत्री थे, तब वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने प्रदर्शनकारियों पर लाठी की जगह वॉटर कैनन का इस्तेमाल शुरू करवाया। उन्हीं के कार्यकाल में पहली बार महिला कंडक्टरों की नियुक्ति शुरू हुई।
7. लाल बहादुर शास्त्री देश की पहली ऐसी शख्सियत हैं, जिन्हें मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न मिला।
8. एक बार की बात है प्रधानमंत्री के तौर पर शास्त्री जी को एक प्रदेश के दौरे पर जाना था। सब कुछ पहले से तय था। लेकिन, एक ऐसी परिस्थिति पैदा हुई कि प्रधानमंत्री की वह यात्रा रद्द हो गई। संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री चाहते थे कि शास्त्री जी जरूर उनके प्रदेश आएं। उन्होंने फोन करके शास्त्री जी को यह बताने की कोशिश की कि उन्होंने उनके लिए फर्स्ट क्लास की व्यवस्था करवाई है। शास्त्री जी ने जवाब दिया कि 'मेरे जैसे थर्ड क्लास व्यक्ति के लिए फर्स्ट क्लास इंतजाम की क्या आवश्यकता?'
9. सार्वजनिक जीवन में ही नहीं, निजी और पारिवारिक जीवन में भी लाल बहादुर शास्त्री सर्वोच्च मानक और उच्च आदर्शों के प्रतीक हैं। दहेज प्रथा पर प्रतिबंध के बावजूद यह आज भी समाज में गंदगी की तरह मौजूद है। लेकिन, शास्त्री जी अपने समय में भी इसके सख्त विरोधी थे। वह ससुराल से दहेज के तौर पर कुछ भी लेने के लिए तैयार नहीं हुए। जब उनके ससुर जी ने बहुत अनुरोध किया, तब जाकर कहीं मात्र खादी की धोती के लिए राजी हुए।
10. प्रधानमंत्री के तौर पर लाल बहादूर शास्त्री का कार्यकाल मात्र 19 महीनों का रहा। 11 जनवरी, 1966 को ताशकंद में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत से पहले इतने कम समय में भी उन्होंने देश की प्रगति में जो अमिट छाप छोड़ी,उसकी तुलना मुमकिन नहीं है।
राजनीति में अलग ही शख्सियत थे शास्त्री जी
जबतक लोकतंत्र है, छोटी कद-काठी, सौम्य व्यक्तित्व लेकिन, फौलादी इरादों वाले लाल बहादुर शास्त्री दुनिया भर के राजनीति के विद्यार्थियों के लिए अनमोल केस स्टडी रहेंगे। विश्व भर की राजनीति आज जिस तरह से नीचता के सारे मानक तोड़ती जा रही है, उसमें शास्त्री जैसे नायक की महान स्मृतियां भविष्य के लिए चट्टानी उम्मीदें जगा देती हैं। प्रधानमंत्री के तौर पर अपने बहुत ही कम समय के कार्यकाल में भी उन्होंने भारत पर जो अमिट छाप छोड़ी, वह एक कीर्ति के तौर पर स्थापित है। वैसे तो शास्त्री जी के बारे लोग बहुत कुछ जानते हैं, लेकिन हम यहां ऐसे 10 रोचक तथ्य बता रहे हैं, जिनके बारे में शायद कम लोगों को पता है।
1. श्रीवास्तव परिवार में जन्म लेने की वजह से उनका नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव पड़ा। लेकिन, वे देश की जातिवादी व्यवस्था को पसंद नहीं करते थे। वे लोकसेवक मंडल के आजीवन सदस्य भी थे, जो पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए काम करता रहा। जब 1925 में वाराणसी स्थित काशी विद्या पीठ ने उन्हें स्नातक की डिग्री के तौर पर 'शास्त्री' की उपाधि दी तो उन्होंने नाम में श्रीवास्तव की जगह शास्त्री कर लिया।
2. एक भयंकर रेल हादसे की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए शास्त्री जी के रेल मंत्री पद से इस्तीफा देने की बात तो ज्यादातर लोगों को पता है। लेकिन, यह शास्त्री जी ही थे, जिन्होंने गृहमंत्री बनने पर भ्रष्टाचार से निपटने के लिए पहली बार समिति भी गठित की थी।
3. एक बार शास्त्री जी को पता चला कि उनके बेटे को नौकरी में समय से पहले प्रमोशन मिल गया है। उन्होंने तत्काल आदेश जारी कर अपने बेटे का प्रमोशन रुकवा दिया।
4. लाल बहादुर शास्त्री बहुत ही सामान्य परिवार से थे। सिर पर कपड़ा और पोथी लेकर गंगा पार कर पढ़ाई के लिए जाने के उनके किस्से भी बहुतों को पता है, लेकिन वे ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी पहली और इकलौती कार (फिएट) खरीदी। उनके पास पैसे नहीं थे, तो उन्होंने इसके लिए 5,000 रुपये लोन लिया। जब उनकी रूस के ताशकंद में संदिग्ध मौत हुई, तबतक इसका लोन नहीं चुका था और संपत्ति के नाम पर भी वे परिवार के लिए यही छोड़कर गए थे। फिर उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने अपनी पेंशन से कर्ज चुकता किया।
5. प्रधानमंत्री रहते शास्त्री जी को एक बार पता चला की उनकी सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल किसी काम के लिए बच्चों ने कर लिया है। यह उनके लिए बहुत ही बड़ी बात थी। सोचने लगे कि सरकार ने गाड़ी तो उन्हें सरकारी काम के लिए दी है, फिर परिवार के सदस्य का इस्तेमाल करना तो बहुत ही गलत है। बच्चे तो बच्चे थे, क्या किया जा सकता था। आखिर तब उनके मन को शांति मिली, जब सरकारी दर पर गाड़ी का पूरा किराया उन्होंने सरकारी खजाने में जमा करवा दिया।
6. जब शास्त्री जी उत्तर प्रदेश में पुलिस और यातायात नियंत्रण मंत्री थे, तब वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने प्रदर्शनकारियों पर लाठी की जगह वॉटर कैनन का इस्तेमाल शुरू करवाया। उन्हीं के कार्यकाल में पहली बार महिला कंडक्टरों की नियुक्ति शुरू हुई।
7. लाल बहादुर शास्त्री देश की पहली ऐसी शख्सियत हैं, जिन्हें मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न मिला।
8. एक बार की बात है प्रधानमंत्री के तौर पर शास्त्री जी को एक प्रदेश के दौरे पर जाना था। सब कुछ पहले से तय था। लेकिन, एक ऐसी परिस्थिति पैदा हुई कि प्रधानमंत्री की वह यात्रा रद्द हो गई। संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री चाहते थे कि शास्त्री जी जरूर उनके प्रदेश आएं। उन्होंने फोन करके शास्त्री जी को यह बताने की कोशिश की कि उन्होंने उनके लिए फर्स्ट क्लास की व्यवस्था करवाई है। शास्त्री जी ने जवाब दिया कि 'मेरे जैसे थर्ड क्लास व्यक्ति के लिए फर्स्ट क्लास इंतजाम की क्या आवश्यकता?'
9. सार्वजनिक जीवन में ही नहीं, निजी और पारिवारिक जीवन में भी लाल बहादुर शास्त्री सर्वोच्च मानक और उच्च आदर्शों के प्रतीक हैं। दहेज प्रथा पर प्रतिबंध के बावजूद यह आज भी समाज में गंदगी की तरह मौजूद है। लेकिन, शास्त्री जी अपने समय में भी इसके सख्त विरोधी थे। वह ससुराल से दहेज के तौर पर कुछ भी लेने के लिए तैयार नहीं हुए। जब उनके ससुर जी ने बहुत अनुरोध किया, तब जाकर कहीं मात्र खादी की धोती के लिए राजी हुए।
10. प्रधानमंत्री के तौर पर लाल बहादूर शास्त्री का कार्यकाल मात्र 19 महीनों का रहा। 11 जनवरी, 1966 को ताशकंद में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत से पहले इतने कम समय में भी उन्होंने देश की प्रगति में जो अमिट छाप छोड़ी,उसकी तुलना मुमकिन नहीं है।
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