फरीदाबाद : दिल्ली ब्लास्ट मामले की जांच में बड़ा खुलासा हुआ है। जांच एजेंसियों ने हरियाणा के फरीदाबादजिले में दो किराए के कमरों से करीब 2,900 किलो अमोनियम नाइट्रेट और अन्य विस्फोटक सामग्री बरामद की थी। शुरुआती जांच में पता चला है कि यह घातक विस्फोटक सामग्री पिछले 30 से 40 दिनों के भीतर छोटे-छोटे बैचों में इन दोनों ठिकानों तक पहुंचाई गई थी। इन दोनों किराए के कमरों को अल-फलाह यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले डॉक्टर मुज़म्मिल अहमद गनई ने किराए पर लिया था। पुलिस सूत्रों के अनुसार, धौज गांव स्थित पहले कमरे में 358 किलो विस्फोटक तीन दिनों के भीतर पहुंचाया गया, जबकि दूसरा बड़ा जखीरा फतेहपुर टगा गांव में स्थित मकान में चार से पांच खेपों में लाया गया।
कैसे लाया गया था विस्फोटक
जांच में सामने आया है कि इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक सामग्री को बेहद गुप्त और सावधानीपूर्वक तरीके से लाया गया था, ताकि किसी को शक न हो। पड़ोसियों को कभी अंदाजा भी नहीं हुआ कि उनके आसपास इतने खतरनाक रसायन जमा किए जा रहे हैं। पुलिस सूत्रों के अनुसार, धौज गांव का मकान अल-फलाह यूनिवर्सिटी से महज एक किलोमीटर की दूरी पर है। ये एक दो मंजिला इमारत है। निचले हिस्से में दुकानें हैं और ऊपर सात कमरे बने हैं, जिनमें ज्यादातर मजदूर वर्ग के परिवार रहते हैं। डॉक्टर मुज़म्मिल ने इसी इमारत के एक कमरे को करीब एक महीने पहले किराए पर लिया था।
विस्फोटक छिपाने के लिए किराए पर लिया था कमरा
भले ही डॉक्टर यूनिवर्सिटी के स्टाफ क्वार्टर में रहता था, लेकिन उसने धौज का यह कमरा किराए पर सिर्फ विस्फोटक सामग्री छिपाने के लिए लिया था। किराए पर कमरा लेने के तीन दिन के भीतर ही उसने एक मिनी वैन से 358 किलो अमोनियम नाइट्रेट वहां मंगवा लिया। पड़ोसियों ने बताया कि उन्होंने डॉक्टर की मदद तो की, लेकिन यह नहीं जान पाए कि थैलों में क्या रखा था। डॉक्टर के पड़ोसी राजा हुसैन ने बताया कि वो हमेशा शांत और शालीन लगता था। हमें कभी नहीं लगा कि वो देशविरोधी गतिविधियों में शामिल हो सकता है। जब पुलिस आई और कमरे का ताला तोड़ा, तब जाकर हमें सच्चाई का पता चला।
मौलवी का घर था दूसरा ठिकाना
दूसरा बड़ा जखीरा फतेहपुर टगा गांव में मिला, जो यूनिवर्सिटी से करीब चार किलोमीटर दूर है। यह मकान मोहम्मद इस्तक़ का है जो 2006 से अल-फलाह यूनिवर्सिटी की मस्जिद के मौलवी हैं। उन्होंने तीन साल पहले 60 गज का यह प्लॉट खरीदा था और मकान बनवाकर उसका एक कमरा डॉक्टर मुज़म्मिल को किराए पर दे दिया था। यह इलाका गांव के एक अंदरूनी हिस्से में खेतों से घिरा हुआ है, जहां पहुंचने के लिए केवल एक संकरा कच्चा रास्ता है। इससे यह जगह विस्फोटक छिपाने के लिए बेहद अनुकूल साबित हुई। मकान अधूरा था और अक्सर बंद रहता था, जिससे किसी को कोई शक नहीं हुआ। 70 वर्षीय मोहम्मदी ने बताया कि हमने डॉक्टर को कभी ठीक से देखा भी नहीं। वो रात को आता था और जल्दी निकल जाता था। मौलवी साहब भी हमेशा नमाज में व्यस्त रहते थे। अब डर लगता है कि इतने खतरनाक विस्फोटक हमारे सिर के ऊपर रखे थे।
जांच एजेंसियों की सख्त पूछताछ
मंगलवार को जम्मू-कश्मीर पुलिस और हरियाणा पुलिस की संयुक्त टीम ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी के आसपास कई इलाकों में तलाशी अभियान चलाया। अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि इतनी बड़ी मात्रा में अमोनियम नाइट्रेट और अन्य विस्फोटक कहां से लाए गए थे और इन्हें कहां इस्तेमाल किया जाना था। फरीदाबाद पुलिस के प्रवक्ता यशपाल ने बताया कि जैसे ही जम्मू-कश्मीर पुलिस से इनपुट मिले, दोनों ठिकानों से विस्फोटक तुरंत बरामद कर लिए गए। एजेंसियां अब यह पता लगाने में जुटी हैं कि ये विस्फोटक कहां से आए, किन वाहनों से लाए गए और इन्हें कब और कैसे वहां जमा किया गया।
कैसे लाया गया था विस्फोटक
जांच में सामने आया है कि इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक सामग्री को बेहद गुप्त और सावधानीपूर्वक तरीके से लाया गया था, ताकि किसी को शक न हो। पड़ोसियों को कभी अंदाजा भी नहीं हुआ कि उनके आसपास इतने खतरनाक रसायन जमा किए जा रहे हैं। पुलिस सूत्रों के अनुसार, धौज गांव का मकान अल-फलाह यूनिवर्सिटी से महज एक किलोमीटर की दूरी पर है। ये एक दो मंजिला इमारत है। निचले हिस्से में दुकानें हैं और ऊपर सात कमरे बने हैं, जिनमें ज्यादातर मजदूर वर्ग के परिवार रहते हैं। डॉक्टर मुज़म्मिल ने इसी इमारत के एक कमरे को करीब एक महीने पहले किराए पर लिया था।
विस्फोटक छिपाने के लिए किराए पर लिया था कमरा
भले ही डॉक्टर यूनिवर्सिटी के स्टाफ क्वार्टर में रहता था, लेकिन उसने धौज का यह कमरा किराए पर सिर्फ विस्फोटक सामग्री छिपाने के लिए लिया था। किराए पर कमरा लेने के तीन दिन के भीतर ही उसने एक मिनी वैन से 358 किलो अमोनियम नाइट्रेट वहां मंगवा लिया। पड़ोसियों ने बताया कि उन्होंने डॉक्टर की मदद तो की, लेकिन यह नहीं जान पाए कि थैलों में क्या रखा था। डॉक्टर के पड़ोसी राजा हुसैन ने बताया कि वो हमेशा शांत और शालीन लगता था। हमें कभी नहीं लगा कि वो देशविरोधी गतिविधियों में शामिल हो सकता है। जब पुलिस आई और कमरे का ताला तोड़ा, तब जाकर हमें सच्चाई का पता चला।
मौलवी का घर था दूसरा ठिकाना
दूसरा बड़ा जखीरा फतेहपुर टगा गांव में मिला, जो यूनिवर्सिटी से करीब चार किलोमीटर दूर है। यह मकान मोहम्मद इस्तक़ का है जो 2006 से अल-फलाह यूनिवर्सिटी की मस्जिद के मौलवी हैं। उन्होंने तीन साल पहले 60 गज का यह प्लॉट खरीदा था और मकान बनवाकर उसका एक कमरा डॉक्टर मुज़म्मिल को किराए पर दे दिया था। यह इलाका गांव के एक अंदरूनी हिस्से में खेतों से घिरा हुआ है, जहां पहुंचने के लिए केवल एक संकरा कच्चा रास्ता है। इससे यह जगह विस्फोटक छिपाने के लिए बेहद अनुकूल साबित हुई। मकान अधूरा था और अक्सर बंद रहता था, जिससे किसी को कोई शक नहीं हुआ। 70 वर्षीय मोहम्मदी ने बताया कि हमने डॉक्टर को कभी ठीक से देखा भी नहीं। वो रात को आता था और जल्दी निकल जाता था। मौलवी साहब भी हमेशा नमाज में व्यस्त रहते थे। अब डर लगता है कि इतने खतरनाक विस्फोटक हमारे सिर के ऊपर रखे थे।
जांच एजेंसियों की सख्त पूछताछ
मंगलवार को जम्मू-कश्मीर पुलिस और हरियाणा पुलिस की संयुक्त टीम ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी के आसपास कई इलाकों में तलाशी अभियान चलाया। अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि इतनी बड़ी मात्रा में अमोनियम नाइट्रेट और अन्य विस्फोटक कहां से लाए गए थे और इन्हें कहां इस्तेमाल किया जाना था। फरीदाबाद पुलिस के प्रवक्ता यशपाल ने बताया कि जैसे ही जम्मू-कश्मीर पुलिस से इनपुट मिले, दोनों ठिकानों से विस्फोटक तुरंत बरामद कर लिए गए। एजेंसियां अब यह पता लगाने में जुटी हैं कि ये विस्फोटक कहां से आए, किन वाहनों से लाए गए और इन्हें कब और कैसे वहां जमा किया गया।
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