अमेरिका ने H-1B वीजा नियमों में ढील देकर प्रवासी स्टूडेंट्स और प्रफेशनल्स को ही नहीं, अमेरिकी कंपनियों को भी बड़ी राहत दी है। इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा प्रवासी भारतीयों पर। हालांकि ट्रंप प्रशासन की अस्थिर नीतियों को देखते हुए अब भी कुछ चिंताएं हैं।
हड़बड़ी में बदलाव । ट्रंप सरकार ने बीते 19 सितंबर को ऐलान किया था कि H-1B वीजा के लिए एक लाख डॉलर की एंट्री फीस ली जाएगी। दो दिनों की डेडलाइन के साथ जिस हड़बड़ी से नए नियम लागू किए गए, उसने प्रवासियों में ही नहीं, अमेरिकी इंडस्ट्री में भी हलचल मचा दी थी। अब नए बदलावों के मुताबिक, जो लोग पहले से अमेरिका में रह रहे हैं, वीजा स्टेटस बदलना चाहते हैं, रिन्यूअल या एक्सटेंशन कराना चाहते हैं उन्हें बढ़ी हुई फीस नहीं देनी पड़ेगी।
भारतीयों पर असर । ट्रंप सरकार के पहले तक अमेरिका हर साल 65 हजार लोगों को वीजा इशू कर रहा था। प्रफेशनल्स के लिए अलग से 20 हजार वीजा दिए जा रहे थे। इनमें से करीब 70% H-1B वीजाधारक भारतीय हैं। इसी तरह से 2023-24 सेशन में 3.3 लाख भारतीय स्टूडेंट्स अमेरिकी संस्थानों में रजिस्टर्ड थे। हर साल अमेरिकी कंपनियां बड़ी संख्या में भारतीयों के लिए H-1B वीजा स्पॉन्सर करती हैं। लेकिन, एक लाख डॉलर की फीस उन्हें भी भारी पड़ती।
ट्रंप पर दबाव । ट्रंप सरकार पर देश के भीतर से ही उद्योग जगत का दबाव था। पिछले ही हफ्ते US चैंबर्स ऑफ कॉमर्स ने सरकार के नए नियमों को कानूनी चुनौती दी थी। संस्था का कहना था कि इससे अमेरिकी कंपनियों के लिए कुशल श्रम महंगा हो जाएगा, जिसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। साथ ही, प्रफेशनल्स की कमी हो सकती है या फिर कम स्किल्ड कर्मचारियों से काम चलाना पड़ सकता है।
प्रवासियों पर सख्ती। हो सकता है कि चौतरफा आलोचनाओं और दबाव की वजह से ट्रंप सरकार को H-1B में छूट देनी पड़ी हो, लेकिन प्रवासियों को लेकर उसका सख्त रुख अब भी कायम है। अमेरिकी विश्वविद्यालयों में विदेशी स्टूडेंट्स की संख्या अब कुल एडमिशन में 15% से अधिक नहीं हो सकेगी और किसी एक देश से आने वाले छात्रों की संख्या 5% से अधिक नहीं होगी। इससे प्रतिभाशाली स्टूडेंट्स के लिए अमेरिका में जाना वैसे भी बहुत मुश्किल हो गया है। फिर, ट्रंप की पॉलिसी में अस्थिरता रही है, तो निश्चित रूप से कोई नहीं बता सकता कि कब इमिग्रेशन से जुड़े नए दिशा-निर्देश आ जाएं। इस अस्थिरता से अमेरिका की इमेज भी कमजोर हो रही है।
हड़बड़ी में बदलाव । ट्रंप सरकार ने बीते 19 सितंबर को ऐलान किया था कि H-1B वीजा के लिए एक लाख डॉलर की एंट्री फीस ली जाएगी। दो दिनों की डेडलाइन के साथ जिस हड़बड़ी से नए नियम लागू किए गए, उसने प्रवासियों में ही नहीं, अमेरिकी इंडस्ट्री में भी हलचल मचा दी थी। अब नए बदलावों के मुताबिक, जो लोग पहले से अमेरिका में रह रहे हैं, वीजा स्टेटस बदलना चाहते हैं, रिन्यूअल या एक्सटेंशन कराना चाहते हैं उन्हें बढ़ी हुई फीस नहीं देनी पड़ेगी।
भारतीयों पर असर । ट्रंप सरकार के पहले तक अमेरिका हर साल 65 हजार लोगों को वीजा इशू कर रहा था। प्रफेशनल्स के लिए अलग से 20 हजार वीजा दिए जा रहे थे। इनमें से करीब 70% H-1B वीजाधारक भारतीय हैं। इसी तरह से 2023-24 सेशन में 3.3 लाख भारतीय स्टूडेंट्स अमेरिकी संस्थानों में रजिस्टर्ड थे। हर साल अमेरिकी कंपनियां बड़ी संख्या में भारतीयों के लिए H-1B वीजा स्पॉन्सर करती हैं। लेकिन, एक लाख डॉलर की फीस उन्हें भी भारी पड़ती।
ट्रंप पर दबाव । ट्रंप सरकार पर देश के भीतर से ही उद्योग जगत का दबाव था। पिछले ही हफ्ते US चैंबर्स ऑफ कॉमर्स ने सरकार के नए नियमों को कानूनी चुनौती दी थी। संस्था का कहना था कि इससे अमेरिकी कंपनियों के लिए कुशल श्रम महंगा हो जाएगा, जिसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। साथ ही, प्रफेशनल्स की कमी हो सकती है या फिर कम स्किल्ड कर्मचारियों से काम चलाना पड़ सकता है।
प्रवासियों पर सख्ती। हो सकता है कि चौतरफा आलोचनाओं और दबाव की वजह से ट्रंप सरकार को H-1B में छूट देनी पड़ी हो, लेकिन प्रवासियों को लेकर उसका सख्त रुख अब भी कायम है। अमेरिकी विश्वविद्यालयों में विदेशी स्टूडेंट्स की संख्या अब कुल एडमिशन में 15% से अधिक नहीं हो सकेगी और किसी एक देश से आने वाले छात्रों की संख्या 5% से अधिक नहीं होगी। इससे प्रतिभाशाली स्टूडेंट्स के लिए अमेरिका में जाना वैसे भी बहुत मुश्किल हो गया है। फिर, ट्रंप की पॉलिसी में अस्थिरता रही है, तो निश्चित रूप से कोई नहीं बता सकता कि कब इमिग्रेशन से जुड़े नए दिशा-निर्देश आ जाएं। इस अस्थिरता से अमेरिका की इमेज भी कमजोर हो रही है।
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