भारत में कैम्पस प्लेसमेंट्स अब सिर्फ अच्छे कॉलेज और डिग्री के नाम पर नहीं हो रहे। कंपनियां अब छात्रों की असली क्षमता और प्रैक्टिकल स्किल्स पर ध्यान दे रही हैं। पहले प्लेसमेंट प्रोसेस 2-3 महीने का होता था, अब 4-6 महीने तक खिंच गया है। कंपनियां जल्दी-जल्दी ऑफर देने के बजाय सही टैलेंट को चुनने में समय लगा रही हैं। FY25 में Pre-Placement Offers (PPOs) में 24% का इजाफा इस बदलाव का बड़ा संकेत है।
इतना ही नहीं, अब कंपनियां सिर्फ मार्क्स या GPA देखकर भी हायर नहीं करतीं। रिपोर्ट के अनुसार 71% कंपनियां अभी भी GPA को शुरुआती फिल्टर के तौर पर इस्तेमाल करती हैं, लेकिन इसके बाद आता है टेक्निकल इंटरव्यू, जनरल असेसमेंट, HR इंटरव्यू, ग्रुप डिस्कशन, केस स्टडी और गेमिफाइड असेसमेंट। 2025 में सबसे नई चीज ये जुड़ी है कि अब कैंपस प्लेसमेंट में भी AI बड़ा रोल निभा रहा है। NBT AI से करियर ग्रोथ वर्कशॉप के साथ अपनी जॉब प्लेसमेंट की तैयारी अभी से शुरू करें।
रोल-फिट और स्किलिंगअब कंपनियां सिर्फ ये नहीं देख रही कि कैंडिडेट नौकरी कर पाएगा या नहीं, बल्कि कौन सा रोल उसके लिए सही रहेगा, यह भी पता लगाती हैं। गेमिफाइड और बिहेवियरल टेस्ट से उम्मीदवारों को भविष्य के रोल्स के लिए मैप किया जाता है। करियर पाथ मॉडलिंग से यह समझा जाता है कि किस उम्मीदवार के पास वर्तमान और भविष्य के रोल्स के लिए कौन-कौन से स्किल्स हैं और कौन-कौन से सीखने होंगे।
कैंपस प्लेसमेंट में AI बना गेम चेंजरजहां पहले AI सिर्फ रिज्यूमे पासिंग के लिए इस्तेमाल होता था, अब यह पूरी हायरिंग प्रोसेस का हिस्सा बन चुका है। समझिए रिक्रूटमेंट में एआई कैसे इस्तेमाल हो रहा है-
AI के साथ कैंपस प्लेसमेंट में चुनौतियांहर बदलाव की तरह AI के साथ भी चुनौतियां हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार-
ऑनबोर्डिंग अब सिर्फ फॉर्मैलिटी नहींकंपनियां अब प्लेसमेंट के बाद भी स्टूडेंट एंगेजमेंट और रिटेंशन पर फोकस कर रही हैं। 14% कंपनियां AI-led वर्चुअल ऑनबोर्डिंग प्लेटफॉर्म इस्तेमाल कर रही हैं। 4% कंपनियां प्रोबेशन के दौरान मिनी प्रोजेक्ट देती हैं। 2% कंपनियां स्पेशलाइज्ड रोल के लिए पर्सनलाइज्ड लर्निंग जर्नी तैयार करती हैं। AI टूल्स इंटरव्यू, असेसमेंट और ऑनबोर्डिंग डेटा एनालिसिस करके एडेप्टिव एक्सपीरियंस बनाते हैं, जिससे सक्सेशन प्लानिंग और रिटेंशन बेहतर होती है।
लॉन्ग-टर्म पोटेंशियल पर जोरअब भारत के कैम्पस प्लेसमेंट्स सिर्फ शॉर्ट-टर्म सप्लाई के लिए नहीं हैं, बल्कि लॉन्ग-टर्म टैलेंट और पोटेंशियल पर ध्यान दिया जा रहा है। सिर्फ डिग्री नहीं, कैंडिडेट की क्षमता और पोटेंशियल मायने रखते हैं। AI अब सिर्फ काम ऑटोमेट करने के लिए नहीं, बल्कि सभी उम्मीदवारों के लिए समान, समावेशी और सोच-समझकर डिजाइन किए गए हायरिंग एक्सपीरिएंस के लिए इस्तेमाल हो रहा है। कुल मिलाकर, AI ने भारत के कैम्पस हायरिंग मॉडल को ज्यादा स्मार्ट, तेज, और फेयर बना रहा है। लेकिन यह भी सच है कि तकनीक और ह्यूमन टच के सही बैलेंस से ही इसकी असली सफलता संभव है।
(डेटा सोर्स- कैंपस वर्कफोर्स ट्रेंड्स रिपोर्ट: प्लेसमेंट साइकल 2025)
इतना ही नहीं, अब कंपनियां सिर्फ मार्क्स या GPA देखकर भी हायर नहीं करतीं। रिपोर्ट के अनुसार 71% कंपनियां अभी भी GPA को शुरुआती फिल्टर के तौर पर इस्तेमाल करती हैं, लेकिन इसके बाद आता है टेक्निकल इंटरव्यू, जनरल असेसमेंट, HR इंटरव्यू, ग्रुप डिस्कशन, केस स्टडी और गेमिफाइड असेसमेंट। 2025 में सबसे नई चीज ये जुड़ी है कि अब कैंपस प्लेसमेंट में भी AI बड़ा रोल निभा रहा है। NBT AI से करियर ग्रोथ वर्कशॉप के साथ अपनी जॉब प्लेसमेंट की तैयारी अभी से शुरू करें।
रोल-फिट और स्किलिंगअब कंपनियां सिर्फ ये नहीं देख रही कि कैंडिडेट नौकरी कर पाएगा या नहीं, बल्कि कौन सा रोल उसके लिए सही रहेगा, यह भी पता लगाती हैं। गेमिफाइड और बिहेवियरल टेस्ट से उम्मीदवारों को भविष्य के रोल्स के लिए मैप किया जाता है। करियर पाथ मॉडलिंग से यह समझा जाता है कि किस उम्मीदवार के पास वर्तमान और भविष्य के रोल्स के लिए कौन-कौन से स्किल्स हैं और कौन-कौन से सीखने होंगे।
कैंपस प्लेसमेंट में AI बना गेम चेंजरजहां पहले AI सिर्फ रिज्यूमे पासिंग के लिए इस्तेमाल होता था, अब यह पूरी हायरिंग प्रोसेस का हिस्सा बन चुका है। समझिए रिक्रूटमेंट में एआई कैसे इस्तेमाल हो रहा है-
- AI रिज्यूमे में टेक्निकल कीवर्ड और लीडरशिप, कोलैबोरेशन की क्षमताएं ढूंढता है।
- AI-enabled असेसमेंट से रोल फिट का अंदाजा लगाया जाता है।
- AI के स्किल-बेस्ड मैचिंग और प्रेडिक्टिव इंडिकेटर्स बड़े वॉल्यूम के उम्मीदवारों को मैनेज करने में मदद करते हैं।
- AI प्रॉक्टरिंग सिस्टम अब 21 तरह की चीटिंग पकड़ सकता है।
- टाइम-टू-हायर 18-32% कम हुआ।
- कंपनियां 3-4 गुना ज्यादा वॉल्यूम मैनेज कर पा रही हैं।
- कॉस्ट/हायर 30-42% कम हुआ।
AI के साथ कैंपस प्लेसमेंट में चुनौतियांहर बदलाव की तरह AI के साथ भी चुनौतियां हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार-
- AI की वजह से 46% छात्र ह्यूमन इंटरैक्शन की कमी महसूस करते हैं।
- 28% छात्र AI रिजेक्शन से स्ट्रेस में रहते हैं।
- आधे छात्रों में अब ‘AI एंग्जायटी’ देखी जा रही है, यानी यह डर कि AI उनकी पर्सनालिटी या इरादों को सही नहीं समझ पाएगा।
ऑनबोर्डिंग अब सिर्फ फॉर्मैलिटी नहींकंपनियां अब प्लेसमेंट के बाद भी स्टूडेंट एंगेजमेंट और रिटेंशन पर फोकस कर रही हैं। 14% कंपनियां AI-led वर्चुअल ऑनबोर्डिंग प्लेटफॉर्म इस्तेमाल कर रही हैं। 4% कंपनियां प्रोबेशन के दौरान मिनी प्रोजेक्ट देती हैं। 2% कंपनियां स्पेशलाइज्ड रोल के लिए पर्सनलाइज्ड लर्निंग जर्नी तैयार करती हैं। AI टूल्स इंटरव्यू, असेसमेंट और ऑनबोर्डिंग डेटा एनालिसिस करके एडेप्टिव एक्सपीरियंस बनाते हैं, जिससे सक्सेशन प्लानिंग और रिटेंशन बेहतर होती है।
लॉन्ग-टर्म पोटेंशियल पर जोरअब भारत के कैम्पस प्लेसमेंट्स सिर्फ शॉर्ट-टर्म सप्लाई के लिए नहीं हैं, बल्कि लॉन्ग-टर्म टैलेंट और पोटेंशियल पर ध्यान दिया जा रहा है। सिर्फ डिग्री नहीं, कैंडिडेट की क्षमता और पोटेंशियल मायने रखते हैं। AI अब सिर्फ काम ऑटोमेट करने के लिए नहीं, बल्कि सभी उम्मीदवारों के लिए समान, समावेशी और सोच-समझकर डिजाइन किए गए हायरिंग एक्सपीरिएंस के लिए इस्तेमाल हो रहा है। कुल मिलाकर, AI ने भारत के कैम्पस हायरिंग मॉडल को ज्यादा स्मार्ट, तेज, और फेयर बना रहा है। लेकिन यह भी सच है कि तकनीक और ह्यूमन टच के सही बैलेंस से ही इसकी असली सफलता संभव है।
(डेटा सोर्स- कैंपस वर्कफोर्स ट्रेंड्स रिपोर्ट: प्लेसमेंट साइकल 2025)
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