Bengaluru, 9 नवंबर . कर्नाटक के आईटी मंत्री प्रियांक खड़गे ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान पर सवाल उठाया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि संघ अपने स्वयंसेवकों द्वारा दिए गए दान के माध्यम से कार्य करता है.
प्रियांक खड़गे ने social media प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट के जरिए संघ प्रमुख भागवत के बयान पर कई सवाल उठाए हैं. उन्होंने पूछा कि ये स्वयंसेवक कौन हैं और उनकी पहचान कैसे की जाती है? दिए गए दान का पैमाना और प्रकृति क्या है? ये योगदान किन तंत्रों या माध्यमों से प्राप्त होते हैं? यदि आरएसएस पारदर्शी तरीके से कार्य करता है तो संगठन को सीधे उसकी अपनी पंजीकृत पहचान के तहत दान क्यों नहीं दिया जाता? पंजीकृत संस्था न होते हुए भी आरएसएस अपने वित्तीय और संगठनात्मक ढांचे को कैसे बनाए रखता है? पूर्णकालिक प्रचारकों को कौन भुगतान करता है और संगठन के नियमित संचालन संबंधी खर्चों को कौन पूरा करता है? बड़े पैमाने के आयोजनों, अभियानों और आउटरीच गतिविधियों का वित्तपोषण कैसे होता है?
प्रियांक खड़गे ने पूछा कि जब स्वयंसेवक “स्थानीय कार्यालयों” से गणवेश या सामग्री खरीदते हैं तो इन निधियों का हिसाब कहां रखा जाता है? स्थानीय कार्यालयों और अन्य बुनियादी ढांचे के रखरखाव का खर्च कौन वहन करता है? ये प्रश्न पारदर्शिता और जवाबदेही के मूलभूत मुद्दे को रेखांकित करते हैं. अपनी विशाल राष्ट्रीय उपस्थिति और प्रभाव के बावजूद आरएसएस अपंजीकृत क्यों बना हुआ है? जब India में प्रत्येक धार्मिक या धर्मार्थ संस्था को वित्तीय पारदर्शिता बनाए रखना आवश्यक है, तो आरएसएस के लिए समान जवाबदेही तंत्र के अभाव का क्या औचित्य है?
वंदे मातरम विवाद पर मंत्री प्रियांक खड़गे ने कहा कि भाजपा और आरएसएस अपने द्वारा रचे गए वैकल्पिक इतिहास में ही रहना पसंद करते हैं. 1930 के दशक में ही रवींद्रनाथ टैगोर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि यह गीत मातृभूमि के लिए है, जॉर्ज पंचम, जॉर्ज चतुर्थ या किसी अन्य जॉर्ज के लिए नहीं. यह बात रिकॉर्ड में दर्ज है.
भाजपा और आरएसएस की समस्या यह है कि वे अपना इतिहास पढ़ने की जहमत नहीं उठाते. मैं भाजपा नेताओं और सभी स्वयंसेवकों से आग्रह करता हूं कि वे ऑर्गनाइजर पत्रिका में प्रकाशित आरएसएस के संपादकीय लेख पढ़ें. जब आप उन संपादकीय लेखों को पढ़ेंगे, तो आपको समझ आएगा कि आप पूरे इतिहास में कितने राष्ट्र विरोधी रहे हैं.
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एमएस/वीसी
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