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देश में दलितों के खिलाफ अन्याय, अत्याचार और हिंसा का सिलसिला भयावह: प्रियंका गांधी

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New Delhi, 10 अक्टूबर . कांग्रेस महासचिव और सांसद प्रियंका गांधी ने Haryana आईपीएस आत्महत्या मामले में भाजपा पर निशाना साधा है. कांग्रेस सांसद ने Friday को social media प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि जातीय प्रताड़ना से परेशान होकर Haryana के आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार की आत्महत्या से पूरा देश स्तब्ध है. देश भर में दलितों के खिलाफ जिस तरह अन्याय, अत्याचार और हिंसा का सिलसिला चल रहा है, वह भयावह है.

उन्होंने कहा कि पहले रायबरेली में हरिओम वाल्मीकि की हत्या, फिर मुख्य न्यायाधीश का अपमान और अब एक वरिष्ठ अधिकारी की आत्महत्या यह साबित करती है कि भाजपा राज दलितों के लिए अभिशाप बन गया है. चाहे कोई आम नागरिक हो या ऊंचे पद पर हो, अगर वह दलित समाज से है तो अन्याय और अमानवीयता उसका पीछा नहीं छोड़ते. जब ऊंचे ओहदे पर बैठे दलितों का यह हाल है तो सोचिए आम दलित समाज किन हालात में जी रहा होगा.

इससे पहले कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी Haryana आईपीएस सुसाइड मामले की निंदा की थी. उन्होंने एक्स पर लिखा कि भाजपा का मनुवादी तंत्र इस देश के एससी, एसटी, ओबीसी और कमजोर वर्गों के लिए एक अभिशाप बन चुका है. Haryana के वरिष्ठ दलित आईपीएस अधिकारी, एडीजीपी, वाई. पूरन कुमार की मजबूरन आत्महत्या की खबर न केवल स्तब्ध करने वाली है, बल्कि सामाजिक अन्याय, अमानवीयता और संवेदनहीनता का भयावह प्रमाण है. परिवार के प्रति मेरी गहरी संवेदनाएं.

उन्होंने आगे लिखा, “पिछले 11 वर्षों में इस देश में भाजपा ने मनुवादी मानसिकता इतनी गहरी कर दी है कि एडीजीपी रैंक के दलित अधिकारी को भी न्याय और सुनवाई नहीं मिलती है. जब Supreme court में सरेआम माननीय मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) पर हमला हो सकता है और उसे भाजपा का इकोसिस्टम जातिवाद और धर्म का हवाला देकर डिफेंड कर सकता है, तो हमें ये समझ लेना चाहिए कि ‘सबका साथ’ का नारा एक भद्दा मजाक था.”

उन्होंने लिखा कि हजारों वर्षों से मनुवादी मानसिकता का शोषण करने की आदत इतनी जल्दी तो नहीं बदल सकती. तभी हरिओम वाल्मीकि जैसे निहत्थे दलित की मॉब लिंचिंग से नृशंस हत्या हो जाती है और Prime Minister मोदी निंदा के दो शब्द भी नहीं बोलते! यह सिर्फ कुछ व्यक्तियों की त्रासदी नहीं, यह उस भाजपा और संघ द्वारा पोषित अन्यायपूर्ण व्यवस्था का आईना है, जो दलित, आदिवासी, पिछड़े व अल्पसंख्यक वर्गों के आत्मसम्मान को बार-बार कुचलती रही है. ये संविधान और लोकतंत्र के लिए घातक है.

एमएस/एएस

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