सुप्रीम कोर्ट ने 8 जनवरी, 2025 को एक महत्वपूर्ण निर्णय में केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह मोटर दुर्घटना के पीड़ितों के लिए 'गोल्डन आवर' के दौरान कैशलेस इलाज की नीति बनाए।
इसका अर्थ है कि चोट लगने के एक घंटे के भीतर पीड़ित को चिकित्सा सहायता मिलनी चाहिए, ताकि जान का खतरा टाला जा सके।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने मोटर वाहन अधिनियम-1988 की धारा-162(2) का उल्लेख करते हुए सरकार को 14 मार्च तक नीति पेश करने का आदेश दिया।
यह नीति दुर्घटना के पीड़ितों को त्वरित चिकित्सा देखभाल प्रदान करके कई जानें बचा सकती है। 'गोल्डन आवर' का मतलब गंभीर चोट के बाद का एक घंटा है, जिसमें त्वरित चिकित्सा हस्तक्षेप से जान बचाई जा सकती है।
बेंच ने कहा, 'हम केंद्र सरकार को निर्देश देते हैं कि वह मोटर वाहन अधिनियम की धारा-162 के संदर्भ में जितनी जल्दी हो सके नीति बनाए।'
कोर्ट ने यह भी कहा कि इस महत्वपूर्ण अवधि के दौरान चिकित्सा देखभाल प्रदान करने की आवश्यकता है, क्योंकि कई मामलों में देरी से जान जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि धारा-162 के तहत कैशलेस इलाज की नीति बनाना केंद्र सरकार का कानूनी दायित्व है, जिसका उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत जीवन के अधिकार की रक्षा करना है।
बेंच ने कहा कि जब कोई व्यक्ति सड़क दुर्घटना में घायल होता है, तो उसके करीबी लोग अक्सर आसपास नहीं होते, इसलिए उसे 'गोल्डन आवर' में आवश्यक चिकित्सा मिलनी चाहिए।
कोर्ट ने यह भी बताया कि अस्पताल के कर्मचारी अक्सर पुलिस के आने का इंतजार करते हैं और इलाज के खर्च को लेकर चिंतित रहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसलिए कानून बीमा कंपनियों को सड़क दुर्घटना पीड़ितों के इलाज के लिए 'गोल्डन आवर' में खर्च मुहैया कराने का प्रावधान करता है।
बेंच ने यह भी बताया कि यह प्रावधान 1 अप्रैल 2022 से लागू है, लेकिन सरकार ने इसे अभी तक लागू नहीं किया है।
केंद्र सरकार ने एक मसौदा नीति प्रस्तुत की थी, जिसमें अधिकतम 1.5 लाख रुपये की उपचार लागत और केवल सात दिनों का इलाज शामिल था।
हालांकि, वकील ने इन नियमों की आलोचना की और कहा कि ये व्यापक देखभाल की आवश्यकता को पूरा नहीं करते।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह नीति को अंतिम रूप देते समय इन चिंताओं का समाधान करे।
कोर्ट ने धारा 164-बी के तहत स्थापित एक मोटर वाहन दुर्घटना कोष के अस्तित्व को भी रेखांकित किया, जिसका उपयोग दुर्घटना पीड़ितों के कैशलेस इलाज के लिए किया जा सकता है।
बेंच ने कहा कि जनरल इंश्योरेंस काउंसिल (जीआईसी) को 'हिट-एंड-रन' मामलों में मुआवजा संबंधी दावों को निपटाने के लिए एक पोर्टल विकसित करने का काम सौंपा गया है।
बेंच ने कहा कि यह पोर्टल आवश्यक दस्तावेजों को अपलोड करने और दावों के भुगतान में देरी को कम करने में मदद करेगा।
फैसले में कहा गया है कि 'हिट-एंड-रन' मुआवजा योजना के तहत 31 जुलाई 2024 तक 921 दावे लंबित थे, इसलिए जीआईसी को दावेदारों के साथ समन्वय करने का निर्देश दिया गया है।
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