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एफआईआई की बिकवाली का मतलब यह नहीं है कि भारतीय बाज़ारों में कमज़ोरी है, भारत तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था

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शेयर मार्केट को पिछले कुछ महीनों में सबसे अधिक किसी एक बात ने परेशान किया है तो वह विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) की बिकवाली है. कैलेंडर ईयर 2025 में एफआईआई तगड़ी बिकवाली कर रहे हैं और यह बिकवाली जीएसटी रिफॉर्म की घोषणा और रेट कट के संकेत के बाद भी नहीं रुकी. अब जबकि ट्रंप के 50% टैरिफ का बोझ भी उठाना है तो एफआईआई की सेलिंग जारी रह सकती है.



लेकिन एफआईआई की बिकवाली का अर्थ यह नहीं है कि इंडिया ग्रोथ स्टोरी में कोई शक है, बल्कि एफआईआई वैल्यूएशन और बेहतर हालात देखकर निवेश का फैसला लेते हैं. वे इमर्जिंग मार्केट की ओर जा रहे हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि भारतीय बाज़ार कमज़ोर हैं.



यह सही है कि एफआईआई भारतीय शेयरों में नेट सेलिंग कर रहे हैं, जिससे बाजार की गति को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं, लेकिन भारतीय बाज़ार की ग्रोथ की एक अलग कहानी है. सैमको म्यूचुअल फंड के सीआईओ उमेश कुमार मेहता का मानना है कि उनकी एफआईआई की सेलिंग करंसी मार्केट और टैक्टिकल ओपोर्चुनिटी जैसे ग्लोबल फैक्टर्स से प्रेरित है, न कि भारत के इन्फ्रा स्ट्रक्चर से जो कि मज़बूत बना हुआ है.



मार्केट कभी एक सीधी लाइन में नहीं चलतामार्केट एक्सपर्ट ने कहा कि शेयर बाज़ार का रिटर्न कभी भी एक सीधी लाइन में नहीं होता, बल्कि दोनों तरफ औसत रिटर्न होता है. इसका मतलब है कि औसत से ऊपर रिटर्न के बाद औसत से नीचे रिटर्न का दौर आएगा और यह आर्थिक विकास, ब्याज दरों और अन्य बड़े फैक्टर्स के आधार पर अलग-अलग स्तरों पर चलता रहता है.



निवेशकों को इसी कारण से अपने लक्ष्यों या निवेश अवधि, निवेश के साधनों, जैसे कि इक्विटी और स्ट्रैटेजी जैसे कि वैल्यू-मोमेंटम आदि पर ध्यान केंद्रित करना होगा, जिससे लॉन्ग टर्म वैल्यू इन्वेस्टमेंट के लिए निवेश किया जा सके. अगर यह सही तरीके से किया जाए तो निकट या मध्यम अवधि का प्रदर्शन मायने नहीं रखेगा. दुनिया की बाकी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में लॉन्ग टर्म संभावनाएं बहुत ज़्यादा हैं, ऐसे में लंबी अवधि में औसत से ऊपर इक्विटी रिटर्न मिलेगा.



एफआईआई की सेलिंग के कई कारणउमेश कुमार मेहता ने कहा कि एफआईआई की बिकवाली कई कारणों से हुई होगी, जैसे कहीं और स्ट्रैटेजिकल मौके, ग्लोबल मार्केट में चिंताएं, करेंसी मार्केट और दूसरे बाज़ारों में बेहतर अवसर. एफआईआई की बिकवाली और घरेलू विकास के बीच ऐतिहासिक रूप से कोई संबंध नहीं रहा है खासकर पिछले 5 वर्षों से यही देखने को मिला है. हाल की प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भारत अभी भी दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है.



उन्होंने कहा कि रिटेल इन्वेस्टर्स की बढ़ती भागीदारी, जीएसटी रिफॉर्म और मज़बूत घरेलू मोर्चे के संसाधन के आधार पर भारतीय बाज़ार फिर से अपनी रफ्तार पकड़ लेंगे और एक बार फिर चीज़ें पटरी पर लौटती दिखेंगी. ऐसे हालात में एफआईआई फिर से भारतीय बाज़ारों में लौट सकते हैं, लेकिन उनके बिना भी भारतीय बाज़ार की ग्रोथ की अपनी एक अलग कहानी है.





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