भारत ने इस फाइनेंशियल ईयर अप्रैल से सितंबर 2025 के दौरान रूस से तेल की खरीद में लगभग 8.4% की कमी की है। यह कमी ऐसे समय में आई है जब अमेरिका भारत पर रूस से तेल खरीदना कम करने का दबाव बढ़ा रहा है। अमेरिका का कहना है कि भारत का रूस से तेल खरीदना, रूस को यूक्रेन युद्ध में मदद पहुंचाता है। इसके अलावा, अमेरिका ने भारत के कुछ सामानों पर दोगुना टैरिफ भी लगा दिया है, जिससे दोनों देशों के व्यापार संबंधों में तनाव बढ़ गया है। भारत की एनर्जी पॉलिसी भी बदल रही है। अब भारतीय तेल रिफाइनर ज्यादा तेल मिडल ईस्ट और अमेरिका से खरीदने लगे हैं। यह बदलाव सिर्फ डिप्लोमैटिक दबाव की वजह से नहीं है, बल्कि रूस से मिलने वाली छूट कम होने और तेल की सप्लाई भी कम होने जैसे कमर्शियल कारण भी हैं।
रूस से तेल इम्पोर्ट में 8.4% की गिरावट
भारत ने अप्रैल से सितंबर 2025 के बीच रूस से एवरेज 1.75 मिलियन बैरल पर डे (bpd) कच्चा तेल इम्पोर्ट किया, जो पिछले साल की तुलना में 8.4% कम है। सितंबर महीने में रूस से इम्पोर्ट 1.6 मिलियन बैरल पर डे रहा, जो अगस्त के बराबर था लेकिन पिछले साल सितंबर से 14.2% कम है। इन आंकड़ों से साफ़ होता है कि रूस से भारत का आयात लगातार घट रहा है। जहां एक तरफ प्राइवेट कंपनियां जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और नायरा एनर्जी ने सितंबर में अपने रूसी तेल इम्पोर्ट बढ़ाए, वहीं दूसरी तरफ सरकारी रिफाइनर कंपनियों ने अपनी खरीदारी घटाई है।
अमेरिका का बढ़ता दबाव और व्यापार समझौते का असरअमेरिका ने हाल ही में भारत पर दबाव बढ़ाया है कि वह रूस से तेल की खरीदारी कम करें। व्हाइट हाउस के ट्रेड एडवाइजर पीटर नवारो ने साफ कहा है कि भारत की रूसी तेल खरीदारी से रूस को युद्ध के लिए फंड मिल रहा है। साथ ही, अमेरिका ने भारत के कुछ प्रोडक्ट्स पर डबल टैरिफ भी लागू कर दिया है, जिससे दोनों देशों के बीच ट्रेड नेगोशिएशंस पर नकारात्मक असर पड़ा है। यूएस ट्रेड सेक्रेटरी स्कॉट बेसेन्ट ने कहा कि भारत को अपने क्रूड ऑयल के सोर्स में बदलाव करना होगा, यानी रूस से कम और अमेरिका से ज्यादा तेल खरीदना होगा। एक भारतीय सरकारी अधिकारी ने भी हाल ही में बताया कि अमेरिका से बढ़ती एनर्जी परचेज का सीधा संबंध भारत-अमेरिका व्यापार समझौतों से है।
अमेरिका और मिडल ईस्ट से बढ़ता तेल आयात
भारत अब तेल की सप्लाई के लिए नए सोर्स की तरफ बढ़ रहा है। अमेरिका से तेल का इम्पोर्ट अप्रैल से सितंबर के बीच 6.8% बढ़कर लगभग 213,000 बैरल पर डे हो गया है। साथ ही, मिडल ईस्ट से तेल के इम्पोर्ट में भी तेजी आई है, जहां से भारत की हिस्सेदारी 42% से बढ़कर 45% हो गई है। इसके अलावा, OPEC देशों की पुरी हिस्सेदारी भी बढ़कर 49% हो गई है, जो पहले 45% थी। ये आंकड़े दिखाते हैं कि भारत अब रूसी तेल पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहता और अपनी सप्लाई सोर्सेज को डायवर्सिफाई कर रहा है ताकि एनर्जी सिक्योरिटी मजबूत हो सके।
कुल तेल आयात और बाजार पर असर
सितंबर 2025 में भारत ने कुल 4.88 मिलियन बैरल पर डे तेल इम्पोर्ट किया, जो अगस्त की तुलना में 1% कम है, लेकिन पिछले साल के सितंबर की तुलना में 3.5% ज्यादा है। इस दौरान रूस की हिस्सेदारी कुल इम्पोर्ट में 40% से घटकर 36% रह गई है, जबकि अमेरिका और मिडल ईस्ट की हिस्सेदारी बढ़ी है। इस बदलाव का असर भारत की एनर्जी सिक्योरिटी, व्यापार रणनीति और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति पर गहरा पड़ रहा है। भारत अब ग्लोबल प्रेशर और इकोनॉमिक फायदा दोनों को बैलेंस्ड करने की कोशिश कर रहा है ताकि अपनी एनर्जी की जरूरतों को मजबूती से पूरा कर सके।
निष्कर्ष: भारत की रूस से तेल खरीदारी में आई गिरावट केवल बाजार की मांग और सप्लाई का मामला नहीं है, बल्कि यह एक बड़ा जियोपॉलिटिकल संकेत है। अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ व्यापारिक रिश्तों को मजबूत बनाए रखने के लिए भारत को अपनी एनर्जी स्ट्रैटेजी में फ्लेक्सिबिलिटी लाना पड़ रहा है। हालांकि भारत अब भी रूस से तेल खरीद जारी रखे हुए है, लेकिन वह अपनी निर्भरता को धीरे-धीरे कम कर रहा है और नए ऑप्शन तलाश रहा है जो उसकी एनर्जी पॉलिसी को अधिक स्थिर और बैलेंस्ड बना सकता है।
रूस से तेल इम्पोर्ट में 8.4% की गिरावट
भारत ने अप्रैल से सितंबर 2025 के बीच रूस से एवरेज 1.75 मिलियन बैरल पर डे (bpd) कच्चा तेल इम्पोर्ट किया, जो पिछले साल की तुलना में 8.4% कम है। सितंबर महीने में रूस से इम्पोर्ट 1.6 मिलियन बैरल पर डे रहा, जो अगस्त के बराबर था लेकिन पिछले साल सितंबर से 14.2% कम है। इन आंकड़ों से साफ़ होता है कि रूस से भारत का आयात लगातार घट रहा है। जहां एक तरफ प्राइवेट कंपनियां जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और नायरा एनर्जी ने सितंबर में अपने रूसी तेल इम्पोर्ट बढ़ाए, वहीं दूसरी तरफ सरकारी रिफाइनर कंपनियों ने अपनी खरीदारी घटाई है।
अमेरिका का बढ़ता दबाव और व्यापार समझौते का असरअमेरिका ने हाल ही में भारत पर दबाव बढ़ाया है कि वह रूस से तेल की खरीदारी कम करें। व्हाइट हाउस के ट्रेड एडवाइजर पीटर नवारो ने साफ कहा है कि भारत की रूसी तेल खरीदारी से रूस को युद्ध के लिए फंड मिल रहा है। साथ ही, अमेरिका ने भारत के कुछ प्रोडक्ट्स पर डबल टैरिफ भी लागू कर दिया है, जिससे दोनों देशों के बीच ट्रेड नेगोशिएशंस पर नकारात्मक असर पड़ा है। यूएस ट्रेड सेक्रेटरी स्कॉट बेसेन्ट ने कहा कि भारत को अपने क्रूड ऑयल के सोर्स में बदलाव करना होगा, यानी रूस से कम और अमेरिका से ज्यादा तेल खरीदना होगा। एक भारतीय सरकारी अधिकारी ने भी हाल ही में बताया कि अमेरिका से बढ़ती एनर्जी परचेज का सीधा संबंध भारत-अमेरिका व्यापार समझौतों से है।
अमेरिका और मिडल ईस्ट से बढ़ता तेल आयात
भारत अब तेल की सप्लाई के लिए नए सोर्स की तरफ बढ़ रहा है। अमेरिका से तेल का इम्पोर्ट अप्रैल से सितंबर के बीच 6.8% बढ़कर लगभग 213,000 बैरल पर डे हो गया है। साथ ही, मिडल ईस्ट से तेल के इम्पोर्ट में भी तेजी आई है, जहां से भारत की हिस्सेदारी 42% से बढ़कर 45% हो गई है। इसके अलावा, OPEC देशों की पुरी हिस्सेदारी भी बढ़कर 49% हो गई है, जो पहले 45% थी। ये आंकड़े दिखाते हैं कि भारत अब रूसी तेल पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहता और अपनी सप्लाई सोर्सेज को डायवर्सिफाई कर रहा है ताकि एनर्जी सिक्योरिटी मजबूत हो सके।
कुल तेल आयात और बाजार पर असर
सितंबर 2025 में भारत ने कुल 4.88 मिलियन बैरल पर डे तेल इम्पोर्ट किया, जो अगस्त की तुलना में 1% कम है, लेकिन पिछले साल के सितंबर की तुलना में 3.5% ज्यादा है। इस दौरान रूस की हिस्सेदारी कुल इम्पोर्ट में 40% से घटकर 36% रह गई है, जबकि अमेरिका और मिडल ईस्ट की हिस्सेदारी बढ़ी है। इस बदलाव का असर भारत की एनर्जी सिक्योरिटी, व्यापार रणनीति और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति पर गहरा पड़ रहा है। भारत अब ग्लोबल प्रेशर और इकोनॉमिक फायदा दोनों को बैलेंस्ड करने की कोशिश कर रहा है ताकि अपनी एनर्जी की जरूरतों को मजबूती से पूरा कर सके।
निष्कर्ष: भारत की रूस से तेल खरीदारी में आई गिरावट केवल बाजार की मांग और सप्लाई का मामला नहीं है, बल्कि यह एक बड़ा जियोपॉलिटिकल संकेत है। अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ व्यापारिक रिश्तों को मजबूत बनाए रखने के लिए भारत को अपनी एनर्जी स्ट्रैटेजी में फ्लेक्सिबिलिटी लाना पड़ रहा है। हालांकि भारत अब भी रूस से तेल खरीद जारी रखे हुए है, लेकिन वह अपनी निर्भरता को धीरे-धीरे कम कर रहा है और नए ऑप्शन तलाश रहा है जो उसकी एनर्जी पॉलिसी को अधिक स्थिर और बैलेंस्ड बना सकता है।
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