राजस्थान की धरती वीरों की भूमि रही है। यहां की मिट्टी में जितना शौर्य और बलिदान रचा-बसा है, उतने ही रहस्यमयी और रहस्यों से भरे किस्से भी। महलों, हवेलियों और किलों की इस धरती पर एक ऐसा किला है जो न सिर्फ अपनी ऐतिहासिक भव्यता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि अपने अलौकिक रहस्यों और भूतिया कहानियों के लिए भी चर्चाओं में बना रहता है। हम बात कर रहे हैं – कुम्भलगढ़ किले की।उदयपुर से लगभग 85 किलोमीटर दूर स्थित यह किला अरावली की पहाड़ियों के बीच बसा है। महाराणा कुम्भा द्वारा 15वीं सदी में निर्मित यह दुर्ग अपनी मजबूत बनावट, 36 किलोमीटर लंबी दीवार और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन जितना भव्य इसका इतिहास है, उतने ही रहस्यमयी इसके अतीत में छुपे कुछ भूतिया प्रसंग भी हैं, जो इसे आम किलों से अलग बनाते हैं।
बलिदान की नींव पर बना किला?
कुम्भलगढ़ किला केवल पत्थरों से नहीं, बलिदान से बना है। इतिहासकारों के अनुसार, जब महाराणा कुम्भा ने किले का निर्माण शुरू किया तो लगातार असफलता मिलती रही। नींव डालते ही दीवारें गिर जातीं, जमीन दरक जाती और श्रमिक भयभीत हो उठते। तब एक संत ने महाराणा को सुझाव दिया कि अगर कोई मानव बलिदान देगा, तभी यह किला स्थिर हो पाएगा।इस पर एक स्थानीय संत ने स्वयं को बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। उन्होंने यह इच्छा जताई कि उनका सिर जहां कटे, वहां मुख्य द्वार बने और जहां उनका शरीर गिरे, वहां मुख्य मंदिर। आज भी हनुमान पोल और देवड़ी मंदिर को इसी बलिदान से जोड़ा जाता है। स्थानीय जनमान्यता है कि रात के समय यहां उस संत की आत्मा आज भी घूमती है, जो निर्माण कार्य की निगरानी किया करता था।
रात में किले में प्रवेश क्यों वर्जित है?
कुम्भलगढ़ किले के रहस्यों को और गहरा बनाता है – रात का सन्नाटा।
सरकारी नियमों के तहत इस किले को शाम 6 बजे के बाद बंद कर दिया जाता है। यहां किसी को भी रात में रुकने की अनुमति नहीं है। स्थानीय लोगों और गाइड्स का कहना है कि सूरज डूबते ही किले का वातावरण बदलने लगता है। कई पर्यटक जिन्होंने नियम तोड़कर रात में किले में रुकने की कोशिश की, उन्होंने अजीबो-गरीब आवाजें, चीखें और परछाइयों का अनुभव किया।कई बार दीवारों पर खुद-ब-खुद चलती परछाइयों को देखा गया है। कुछ लोगों ने मंदिरों के आसपास सफेद साड़ी पहने एक स्त्री को चलते देखा है, जो अचानक गायब हो जाती है।
मंदिरों में पूजा लेकिन डर के साथ
कुम्भलगढ़ किले में लगभग 360 से अधिक मंदिर हैं – हिन्दू और जैन दोनों। परंतु इनमें कुछ मंदिरों के बारे में कहा जाता है कि वहां अजीब किस्म की ऊर्जा है। विशेषकर रात के समय जब मंदिर सूने होते हैं, तो अक्सर घंटी बजने की आवाजें, हवा के बिना दीपक हिलना या दरवाजों का अपने आप खुलना-बंद होना जैसी घटनाएं सामने आई हैं।यहां काम करने वाले कुछ पुरातत्व कर्मचारी भी स्वीकार करते हैं कि उन्होंने रात की शिफ्ट में कई रहस्यमयी घटनाओं का अनुभव किया है, और कई बार वे खुद बिना कार्य समाप्त किए किले से लौट आते हैं।
किले के एक बंद तहखाने की कहानी
कहते हैं कि किले में एक गुप्त तहखाना है जिसे आज तक खोला नहीं गया। लोककथाओं के अनुसार वहां किसी समय युद्ध के बंदी या विद्रोही रखे जाते थे। लेकिन जब एक रात वहां आग लग गई, तो बंदियों के साथ-साथ पहरेदार भी जिंदा जल गए।
स्थानीय लोग मानते हैं कि उनकी व्याकुल आत्माएं आज भी वहां कैद हैं और कभी-कभी रात में रोने-चीखने की आवाजें आती हैं। ASI (भारतीय पुरातत्व विभाग) के कुछ दस्तावेज़ों में इस हिस्से का उल्लेख है, लेकिन उसे आम दर्शकों के लिए बंद रखा गया है।
क्या ये सब सिर्फ किस्से हैं?
कई लोग इन बातों को सिर्फ लोककथाएं या पर्यटन को बढ़ावा देने वाली कहानियां मानते हैं। परंतु जिन्होंने कुम्भलगढ़ की रातों को महसूस किया है, वे इन अनुभवों को झूठ नहीं कह पाते। राजस्थान के अन्य किलों जैसे भानगढ़, चित्तौड़ और जैसलमेर की तरह कुम्भलगढ़ भी इतिहास और रहस्य का संगम है।वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो पुराने स्थानों की बनावट, अकेलापन, और वातावरण कई बार भ्रम पैदा कर सकते हैं। परंतु जब बार-बार एक जैसे अनुभव सामने आएं, तो प्रश्न उठना स्वाभाविक है—क्या यह सिर्फ संयोग है?
निष्कर्ष – कुम्भलगढ़: इतिहास, वीरता और रहस्य का जीता-जागता स्मारक
कुम्भलगढ़ किला सिर्फ दीवारों, मंदिरों और दुर्गों का मेल नहीं है। यह शौर्य, आस्था और रहस्य का प्रतीक है। जहां दिन में वीरता की गाथाएं गूंजती हैं, वहीं रात में सन्नाटे के बीच अनकहे भूतिया किस्से कानों में फुसफुसाते हैं। यह जगह हर उस व्यक्ति को आकर्षित करती है जो इतिहास के साथ-साथ रूहानी रहस्यों में भी रुचि रखता है।
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